कोरोना ने ठप्प किया महंगे कालीनों का निर्यात ,यूज एंड थ्रो वाले सस्ते गलीचों की विदेशों से आ रही है मांग

Edited By Ramkesh,Updated: 13 Jun, 2020 07:52 PM

corona has stopped the export of expensive carpets

कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी ने उच्च गुणवत्ता वाले महंगे कालीनों का व्यापार ठप्प कर दिया है और अब बायर सिर्फ यूज एंड थ्रो वाले सस्ते कालीन...

भदोही: कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी ने उच्च गुणवत्ता वाले महंगे कालीनों का व्यापार ठप्प कर दिया है और अब बायर सिर्फ यूज एंड थ्रो वाले सस्ते कालीन उपयोग करने पर जोर दे रहे हैं। कालीनों के आयातक दो बड़े देश अमरीका और यूरोप की हालत भारत से भी खराब है जिसके कारण आगामी 2 वर्षों तक लग्जरी कारपेट की मांग न के बराबर रहेगी और इसका उद्योग पर बुरा असर पड़ेगा।

कालीन के वैश्विक बाजार में भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों का दबदबा है। कार्पेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काऊंसिल के आकड़ों के मुताबिक 12 हजार से अधिक की कालीन विदेशों में निर्यात की जा रही हैं। इसमें एक बड़ा हिस्सा भदोही जिले का भी है। हस्तनिर्मित कालीन एक लग्जरी आइटम है और कोरोना वायरस के पहले इसकी अच्छी डिमांड थी लेकिन जैसे ही वायरस का असर शुरू हुआ तो इसका सबसे बड़ा प्रभाव लग्जरी आइटम पर पड़ा, जिसमें हस्तनिर्मित कालीन भी शामिल है।

कालीन निर्यातक संजय गुप्ता ने बताया कि सबसे बड़े आयातक देश अमरीका और यूरोप की हालत कोरोना के कारण बहुत ही खराब है। वहां के लोग भविष्य को देखते हुए पैसे बचाने पर भी जोर दे रहे हैं। इसलिए हस्तनिर्मित महंगी कालीनों की मांग ठप्प है। वहां जो समर्थ हैं वह अपने घरों में बदलाव करने के दौरान सस्ते और यूज एंड थ्रो वाले कारपेट की डिमांड कर रहे हैं, हो सकता है आने वाले समय में सस्ते कार्पेट की मांग बढ़ जाए और अगर ऐसा होता है तो इसका उद्योग को कुछ फायदा जरूर मिलेगा लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए निर्यताकों का मानना है कि अगले 2 वर्षों तक महंगे कालीनों के निर्यात पर बड़ा असर रहेगा।

वहीं यू.पी. एक्सपोर्ट प्रमोशन काऊंसिल के उपाध्यक्ष व कालीन निर्यातक विनय कपूर ने बताया कि कोरोना वायरस के बाद से इंडस्ट्री में 3 हजार करोड़ की कालीन डंप है और निर्यताको का इतना ही पैसा विदेशी आयातकों के पास फंसा हुआ है। कोविड के कारण बुनकरों से भी सोशल डिस्टैंसिंग के साथ काम करवाने पर जोर दिया जा रहा है जिससे काम धीमा हो रहा है। पहले जहां लूम पर एक साथ कई बुनकर मिलकर बुनाई करते थे अब सोशल डिस्टैंसिंग के कारण उनकी संख्या कम कर दी गई है जिसके कारण कालीन बनाने में अधिक समय लग है। इंडस्ट्री में इकोनॉमिकल क्राइसिस है लेकिन उद्योग को उम्मीद है कि कोरोना से निजात मिलते ही सब कुछ दोबारा पटरी पर लौट आएगा।

 

 

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