देवी मां का ऐसा भव्य मन्दिर, जहां मूर्ति न होने पर भी लगता है भक्तों का जमावड़ा

Edited By Ajay kumar,Updated: 30 Sep, 2019 02:08 PM

such a grand temple of mother goddess where a gathering of devotees no idol

यूपी के इस जिले में  देवी  माँ  का  एक  ऐसा  भव्य  मन्दिर  है जहाँ कोई  मूर्ति  नही  है। आस्था के इस अनूठे केन्द्र में लोग मूर्ति की नहीं बल्कि पालने की पूजा करते...

प्रयागराज: यूपी के इस जिले में  देवी  माँ  का  एक  ऐसा  भव्य  मन्दिर  है जहाँ कोई  मूर्ति  नही  है। आस्था के इस अनूठे केन्द्र में लोग मूर्ति की नहीं बल्कि पालने की पूजा करते हैं। मान्यता है कि यहां हाथों पर रक्षा सूत्र बांधकर मांगने वालों की हर कामना पूरी होती है, और हाथ में धागा बंधे रहने तक अलोपी देवी उनकी रक्षा करती हैं।

पावन-पवित्र धर्म की नगरी कहे जाने वाले प्रयागराज में अलोपी देवी मंदिर संगम के नजदीक स्थित है। देवी का यह मंदिर आस्था का एक अनूठा केन्द्र है।ऐसी सिद्ध-पीठ जिसमें कोई मूर्ति नहीं है। फिर भी रोज़ाना देश के कोने-कोने से आने वाले हजारों श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है। आस्था के इस अनूठे केन्द्र में मूर्ति तो नहीं है लेकिन एक पालना (झूला) लगा है। श्रद्धालु मूर्ति की जगह इसी पालने का दर्शन कर पूजा करते हैं, तथा इसी पालने में देवी का स्वरूप देखकर उनसे सुख-समृध्दि व वैभव का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है की यहां जो भी श्रद्धालु देवी के पालने के सामने हाथों में रक्षा-सूत्र बांधता है देवी उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और हाथों में रक्षा सूत्र बंधे रहने तक उसकी रक्षा भी करती हैं।

पुराणों में वर्धित कथा के मुताबिक प्रयागराज में इसी जगह पर देवी के दाहिने हाथ का पंजा कुंड में गिरकर अदृश्य हो गया था। पंजे के अलोप होने की वजह से ही इस जगह को सिद्ध-पीठ मानकर अलोप शंकरी मन्दिर का नाम दिया गया। सती के शरीर के अलोप होने की वजह से ही यहां कोई मूर्ति नहीं है और श्रद्धालु कुंड पर लगे पालने (झूले) का ही दर्शन-पूजन करते हैं। आस्था के इस अनूठे केन्द्र में श्रद्धालु कुंड  से  जल  लेकर  पालने  तक  चढ़ते  हैं  और  उसकी  परिक्रमा  कर  देवी  से  आशीर्वाद  लेते  हैं।

उषा त्रिपाठी और के डी त्रिपाठी श्रद्धालु का कथन-
शक्ति पीठ अलोप शंकरी  मन्दिर  में  पालने  की  पूजा  के  लिए हर वर्ष श्रद्धालुओं  की  भारी-भीड़  उमड़ती  है। ऐसी यहां की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु आकर सच्चे मन से कामना करता है देवी मां अपने दाहिने हाथ से आशीर्वाद देकर उसकी मनोकामना पूरी करती हैं। यहां पर नारियल, चुनरी के साथ-साथ जल और सिन्दूर चढ़ाए जाने की भी परम्परा शदियों से चली आ रही है। 

  

 

 

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