नालियों में बह रहा था खून! रामभक्तों में जोश मार रहा था उबाल...जब राम मंदिर के कारसेवकों पर हुई दनादन फायरिंग

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 17 Jan, 2024 03:12 PM

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Ayodhya राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं, ऐसे में उस दौर को भी याद करना लाजमी हो जाता है, जब राम मंदिर अंदोलन करने वाले निहत्थे कारसेवकों ने सीने पर गोली ...

Ayodhya: राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं, ऐसे में उस दौर को भी याद करना लाजमी हो जाता है, जब राम मंदिर अंदोलन करने वाले निहत्थे कारसेवकों ने सीने पर गोली खाई। 28 साल पहले अयोध्या के हनुमान गढ़ी जा रहे कारसेवकों को गोलियां चलाई गईं थीं। उत्तर प्रदेश में तब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। हिंदू साधु-संतों ने अयोध्या कूच कर रहे थे। उन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी थी। प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था, इसके चलते श्रद्धालुओं के प्रवेश नहीं दिया जा रहा था। पुलिस ने बाबरी मस्जिद के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी।
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कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई थी। पहली बार 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों पर चली गोलियों में 5 लोगों की मौत हुई थीं। इस घटना के बाद अयोध्या से लेकर देश का माहौल पूरी तरह से गर्म हो गया था। इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 2 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, जो बाबरी मस्जिक के बिल्कुल करीब था। उमा भारती, अशोक सिंघल, स्वामी वामदेवी जैसे बड़े हिन्दूवादी नेता हनुमान गढ़ी में कारसेवकों का नेतृत्व कर रहे थे। ये तीनों नेता अलग-अलग दिशाओं से करीब 5-5 हजार कारसेवकों के साथ हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ रहे थे।
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प्रशासन उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था, लेकिन 30 अक्टूबर को मारे गए कारसेवकों के चलते लोग गुस्से से भरे थे। आसपास के घरों की छतों तक पर बंदूकधारी पुलिसकर्मी तैनात थे और किसी को भी बाबरी मस्जिद तक जाने की इजाजत नहीं थी। 2 नवंबर को सुबह का वक्त था अयोध्या के हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे। पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब ढेड़ दर्जन लोगों की मौत हो गई। ये सरकारी आंकड़ा है। इस दौरान ही कोलकाता से आए कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई थी। 
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प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि इस दिन हनुमानगढ़ी के आसपास की गलियां खून से लाल हो गई थी। नालियों में खून बह रहा था। सुरक्षाकर्मी इस भीड़ में 30 अक्टूबर को बाबरी मस्जिद पर भगवा झंडा फहराने वाले कोठारी बंधुओं को ढूंढ़ रहे थे। सुरक्षाबलों ने एक घर में छिपे कोठारी बंधुओं को खींचकर सड़क पर लाए। बीच सड़क पर उन्हें गोली मारे जाने का दावा प्रत्यक्षदर्शियों की ओर से किया जाता है। कोठारी बंधुओं के अलावा जोधपुर के सेठाराम माली, गंगानगर के रमेश कुमार, फैजाबाद महावीर प्रसाद, अयोध्या के रमेश पांडेय, मुजफ्फरपुर के संजय कुमार, जोधपुर के प्रो. महेंद्रनाथ अरोड़ा, राजेंद्र धारकर, बाबूलाल तिवारी और एक अनाम साधु के इस घटना में मारे जाने का रिकॉर्ड मिलता है। हिंदू संगठनों का दावा है कि पुलिस ने उस दिन सैकड़ों कारसेवकों की हत्या की। कई शवों का अज्ञात स्थानों पर दाह संस्कार कराया। बड़ी संख्या में लाशों को बोरे में भरकर सरयू नदी में भी प्रवाहित करने का आरोप भी पुलिस पर है।
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कारसेवकों ने अयोध्या में मारे गए कारसेवकों के शवों के साथ प्रदर्शन भी किया। आखिरकार 4 नवंबर को कारसेवकों का अंतिम संस्कार किया गया और उनके अंतिम संस्कार के बाद उनकी राख को देश के अलग-अलग हिस्सों में ले जा गया था। अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव ने कई साल बाद उस दौर पर बात करते हुए कहा था कि उस समय मेरे सामने मंदिर-मस्जिद और देश की एकता का सवाल था।

 

बीजेपी वालों ने अयोध्या में 11 लाख की भीड़ कारसेवा के नाम पर लाकर खड़ी कर दी थी। देश की एकता के लिए मुझे गोली चलवानी पड़ी। हालांकि, मुझे इसका अफसोस है, लेकिन और कोई विकल्प नहीं था। इस घटना के दो साल बाद 6 दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। 

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