Edited By Imran,Updated: 19 Aug, 2025 12:08 PM

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में बलिदान दिवस के अवसर पर गुटबाजी देखी गई। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने अलग अलग समय पर जेल से जुलूस निकाला । भाजपा विधायक का कहना है कि कुछ लोग इस कार्यक्रम को ख़राब करने का प्रयास कर रहे थे।
बलिया ( मुकेश मिश्रा ): उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में बलिदान दिवस के अवसर पर गुटबाजी देखी गई। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने अलग अलग समय पर जेल से जुलूस निकाला । भाजपा विधायक का कहना है कि कुछ लोग इस कार्यक्रम को ख़राब करने का प्रयास कर रहे थे। जेल के अंदर कुछ लोग कह रहे थे कि पुनः देश गुलाम हो गया। पुनः देश गुलाम हो गया। वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि एक समय निर्धारित था। समय पर हम लोग निकले हैं। वहीं परिवहन मन्त्री दया शंकर सिंह का कहना है कि जेल में दो फाटक है इसलिए दो बार खुला।
दरअसल बलिया 19 अगस्त 1942 को अंग्रेजों कि गुलामी से आजाद हुआ था और 14 दिन तक आजाद रहा और देश में अंग्रेजों कि गुलामी से आजाद होने वाला पहला जिला था। उसी समय से यह परम्परा चली आ रही है कि 19 अगस्त को सभी बलिया वासी जेल पर इकठ्ठा होते हैं जिसमे सभी दलों के नेता भी शामिल होते हैं और जेल का फाटक खोलने की औपचारिकता पूरी करते हुए कुछ लोग जेल से बाहर निकालते हैं और जुलुस लेकर शहर में लगी स्वतंत्रता सेनानीयों की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करते हैं। आज इसी कार्यक्रम में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भी शामिल हुए थे और वो सबसे अलग जेल से बाहर निकले। उनका कहना है कि समय हो गया था इस लिए हम लोग चल दिए।
'कुछ लोग कार्यक्रम को खराब करना चाहते हैं'
जबकि भाजपा विधायक केतकी सिंह का कहना है की कुछ लोग कार्यक्रम ख़राब करना चाह रहे थे और पुनः देश गुलाम हो गया पुनः देश गुलाम हो गया कह रहे थे। अलग अलग निकलने पर परिवहन मन्त्री दया शंकर सिंह ने कहा कि जेल में दो फाटक है इसलिए दो बार खुला।
बलिया के आजादी की कहानी
बलिया बलिदान दिवस प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में मनाया जाता है। यह दिन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बलिया के क्रांतिकारियों के बलिदान को याद करने के लिए समर्पित है। 19 अगस्त 1942 को, बलिया के लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर जिला कारागार का फाटक खोलकर अपने साथी स्वतंत्रता सेनानियों को आजाद कराया था। इस आंदोलन के नेतृत्व में चित्तू पांडेय जैसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और कुछ समय के लिए बलिया को स्वतंत्र घोषित किया। इस दौरान कई क्रांतिकारियों ने अपनी जान गंवाई, जिनमें दु:खी कोईरी, शिव प्रसाद कोईरी, गणपति पांडेय, ढेला दुसाध राम, और शुभग चर्मकार जैसे वीर शामिल थे।बलिया को "बागी बलिया" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसने स्वतंत्रता संग्राम में अपने विद्रोही तेवरों से अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर किया था। इस दिन जिला प्रशासन द्वारा प्रतीकात्मक रूप से जेल का फाटक खोला जाता है, और क्रांतिकारियों की मूर्तियों पर माल्यार्पण कर जुलूस और सभाएं आयोजित की जाती हैं।