सनातन संस्कृति के इतिहास में लिखा गया नया अध्याय, पहली बार ‘महामंडलेश्वर’ बनेगा ये दलित संत

Edited By Anil Kapoor,Updated: 25 Apr, 2018 07:36 AM

सनातन संस्कृति के इतिहास में पहली बार वह हुआ जो आज तक नहीं हुआ था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस बार एक दलित साधु को महामंडलेश्वर बनाने की घोषणा की है। इतिहास में पहली बार है जब किसी दलित को महामंडलेश्वर उपाधि देने का फैसला किया गया है।

इलाहाबाद: सनातन संस्कृति के इतिहास में पहली बार वह हुआ जो आज तक नहीं हुआ था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस बार एक दलित साधु को महामंडलेश्वर बनाने की घोषणा की है। इतिहास में पहली बार है जब किसी दलित को महामंडलेश्वर उपाधि देने का फैसला किया गया है। इस बात की पुष्टि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने मंगलवार को की है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के इस कदम को समाज में बदलाव और ऊंच नीच की भावना को खत्म करने के रूप से देखा जा रहा है। महामंत्री महंत हरि गिरि का कहना है कि इस फैसले से सामाजिक समरसता की दिशा में बड़ा आध्यात्मिक बदलाव आएगा। इससे देश में सामाजिक असमानता को बराबरी और जातीय भेदभाव की भावना को दूर करने में मदद मिलेगी।

बता दें कि महामंडलेश्वर की उपाधि पाने वाले दलित साधु का नाम कन्हैया कुमार कश्यप है। कन्हैया आजमगढ़ के ग्राम बरौनी दिवाकर पट्टी, थाना बिलरियागंज के रहने वाले है। उनके बारे में कहा जाता है कि वर्ष 2006 में उन्होंने जूना अखाड़े के महंत पंचानन गिरि महाराज से दीक्षा ली। वहीं पर महंत पंचानन गिरि महाराज ने उनका नमकर किया और वह कन्हैया कुमार कश्यप से कन्हैया प्रभुनंद गिरि के रूप में जानें जाने लगे।

जूना अखाड़े से लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंडलेश्वर बनने तक का उनका सफर काफी लम्बा और ऐतिहासिक रहा। सोमवार की शाम यमुना किनारे मौज गिरि आश्रम में पहले दलीत महामंडलेश्वर के रूप में उनके नाम की घोषणा की गई। उसी शाम उनको संन्यास संस्कार के रीति के अनुसार उनका केश मुंडन कर के स्नान के बाद उनको संन्यास वेश धारण कराया गया। अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों और जूना अखाड़े के संतों की मौजूदगी में उन्हें मंत्रोच्चार के साथ संन्यास संस्कार की दीक्षा दी गई।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने बताया कि सनातन संस्कृति के इतिहास में पहली बार कोई दलित साधु महामंडलेश्वर पद की उपाधी पर बैठने वाला है। इससे पहले सिर्फ आदिवासी, वनवासी समुदाय के साधुओं को ही महामंडलेश्र्वर बनाया गया था। अखाड़ा परिषद के इस फैसले से सामाजिक समरसता की दिशा में सुखद संदेश जाएगा। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पहले दलीत महामंडलेश्वर की उपाधी के दौरान वहां काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगदगुरु स्वामी नरेंद्रानंद सररस्वती महाराज भी मौजूद रहे। इस मौके पर महामंत्री, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और कन्हैया कुमार कश्यप के गुरु पंचानन गिरि महाराज भी मौजूद रहे।

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