'गालिब' Bday special: 'ऐ बुरे वक्त जरा अदब से पेश आ...क्योंकि वक्त नहीं लगता, वक्त बदलने में'

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 27 Dec, 2019 03:33 PM

ghalib bday special ae bure waqt zara adab se pesh aa

उर्दू अदब मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी के बगैर अधूरी है। गालिब की शायरी ऐसी हैं, जो हमारे दिल को छू जाती हैं। मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” का जन्म 27 दिसंबर 1795 को हुआ था। आज मशहूर शायर मिर्जा गालिब की 222वां जन्मदिन है। आइए आज उनके जीवन के...

यूपी डेस्कः उर्दू अदब मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी के बगैर अधूरी है। गालिब की शायरी ऐसी हैं, जो हमारे दिल को छू जाती हैं। मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” का जन्म 27 दिसंबर 1795 को हुआ था। आज मशहूर शायर मिर्जा गालिब की 222वां जन्मदिन है। आइए आज उनके जीवन के कुछ पन्नों पर प्रकाश डालते हैं।

गालिब के दिल को छू लेने वाले शेरः-

रहने दे मुझे, इन अंधेरों में ग़ालिब...
कमबख़्त रौशनी में, अपनों के असली चहरे नज़र आ जाते हैं...

ऐ बुरे वक्त जरा अदब से पेश आ,
क्योंकि वक्त नहीं लगता, वक्त बदलने में..

इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के...


हाथों की लकीरों पर मत जा ऐ 'गालिब', 
नसीब उनके भी होंते हैं जिनके हाथ नहीं होते...

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले...

उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है...

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त, लेकिन
दिल को ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है...

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे...

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं, जिस काफ़िर पे दम निकले...

बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई 'ग़ालिब',
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है...

तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने 'ग़ालिब'
के सारी उम्र अपना कसूर ढूंढ़ते रहे...


सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में जन्में थे गालिब
ग़ालिब का जन्म आगरा में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने पिता और चाचा को बचपन में ही खो दिया था, ग़ालिब का जीवनयापन मूलत: अपने चाचा के मरणोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था। वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सैन्य अधिकारी थे। ग़ालिब की पृष्ठभूमि एक तुर्क परिवार से थी और इनके दादा मध्य एशिया के समरक़न्द से सन् 1750 के आसपास भारत आए थे। उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आए। उन्होने दिल्ली, लाहौर व जयपुर में काम किया और अन्ततः आगरा में बस गए। उनके 2 पुत्र व 3 पुत्रियां थी। मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग खान व मिर्ज़ा नसरुल्ला बेग खान उनके 2 पुत्र थे।
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उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर 
मिर्जा गालिब उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है। साथ ही फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इनको दिया जाता है। यद्दपि इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी "मीर" भी इसी वजह से जाना जाता है। 

13 वर्ष की आयु में हो गया था विवाह 
13 वर्ष की आयु में उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली चले गए थे। जहां उनकी तमाम उम्र बीती। अपने पेंशन के सिलसिले में उन्हें कोलकाता कि लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी, जिसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है।

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