Elections Slogans: सरकार बनाने और बिगाड़ने में चुनावी नारों की रही अहम भूमिका, पढ़ें अब तक के कुछ दिलचस्प नारे

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 04 May, 2024 02:51 PM

election slogans played an important role in making or breaking

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हिन्दुस्तान में चुनाव के दौरान संवेदनशील ‘‘चुनावी नारों'' की बदौलत मतदाताओं को अपने पक्ष ...

प्रयागराज: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हिन्दुस्तान में चुनाव के दौरान संवेदनशील ‘‘चुनावी नारों'' की बदौलत मतदाताओं को अपने पक्ष में कर हारती बाजी को जीत और जीतती हुई बाजी को हार में बदलकर सरकारें बनती और बिगडती देखी गई है। भारतीय राजनीति में चुनावों नारों की अहम भूमिका रही है। नारे, मतदाताओं को आकर्षित कर अपने पक्ष में मतदान करने की संवेदनशील अपील है, जो अनवरत कायम है। देश में नारों की सहायता से कई बार सरकारें बनती और बिगड़ती देखी गयी है। नारे एक व्यवस्था या व्यक्ति के बारे में कुछ भी बताने की क्षमता रखते हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता के के श्रीवास्तव ने बताया कि तमाम चुनाव ऐसे रहे हैं जो नारों पर ही टिके थे। 

उन्होंने बताया कि एक दोहा है ‘‘ देखन में छोटन लगे, घाव करें गंभीर।'' चुनावी नारे इतने असरदार होते हैं कि हवा के रूख को बदलने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने बताया कि ‘‘ जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा, राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है,‘नसबंदी के तीन दलाल ‘‘इंदिरा, संजय, बंसीलाल‘', द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में,'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है का काउंटर था ‘‘ छोरा गंगा किनारे वाला'' जैसे नारों में दिग्गजों को धूल चटाया तो सिर पर ताज भी पहनाया। उन्होंने बताया कि 1952, 1957 और 1962 में कांग्रेस का ही वर्चस्व था। उस समय तक जो भी चुनाव हुए उसमें कांग्रेस के पास ‘‘दो बैलों की जोड़ी'' जबकि जनसंघ का चुनाव निशान ‘‘दीपक'' और प्रजा सोशलिस्ट पाटर्ी का चुनाव निशान झोपडी थी। इसी को लेकर तमाम नारे बने जो बहुत कारगर नहीं थे क्योंकि उस समय मे पंडित जवाहर लाल नेहरू का वजूद कायम था।        

नारों के लिहाज से इंदिरा गांधी का समय बहुत दिलचस्प था। उनके सक्रिय होने के दौरान कई नारे खूब चर्चित हुए। शुरुआत में ये नारा बहुत गूंजता था- ‘जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो, बीड़ी में तम्बाकू है, कांग्रेस पार्टी डाकू है'. ये नारा अलग-अलग शब्दों के प्रयोग के साथ लगाया जाता था। इसके अलावा ‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया' नारा भी खूब चला था। इमरजेंसी के दौरान कई नारे गूंजे थे। कांग्रेस का सबसे चर्चित नारा रहा- ‘कांग्रेस लाओ, गरीबी हटाओ'. ये नारा हर चुनाव में लगता रहा और फिर विपक्ष ने इसकी काट में ‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ', नारा दिया। नसबंदी को लेकर भी कांग्रेस के खिलाफ खूब नारे चमके जिससे कांग्रेस मुंह की खायी।        

श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1969 में कांग्रेस अध्यक्ष सिद्दवनहल्ली निजलिंगप्पा को गांधी ने पार्टी से निष्कासित कर दिया। उस समय असंतुष्ट धड़े के साथ निजलिंगप्पा, कुमारस्वामी कामराज और मोरारजी देसाई जैसे कांग्रेस नेताओं ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस-आर पार्टी बनायी। चुनाव आयोग ने कांग्रेस की दो बैलों की जोडी को जब्त कर लिया। वर्ष 1971 के चुनाव में निजलिंगप्पा की पार्टी को ‘‘तिरंगे में चरखा'' और इंदिरा गांधी की पार्टी को ‘‘गाय और बछड़ा। चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी की अलग पहचान बनाए रखने को लेकर आम लोगों को दिलों के छू लेने वाला‘गरीबी हटाओ'का नारा दिया। इस चुनावी नारे ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता हासिल की।

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