गालिब जन्मदिन स्पेशलः ‘‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के”

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Dec, 2017 03:52 PM

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मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” का जन्म 27 दिसंबर 1795 को हुआ था। आज मशहूर शायर मिर्जा गालिब की पुण्यतिथि है। आइए आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन के कुछ पन्नों ...

आगराः मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” का जन्म 27 दिसंबर 1795 को हुआ था। आज मशहूर शायर मिर्जा गालिब की पुण्यतिथि है। आइए आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन के कुछ पन्नों पर प्रकाश डालते हैं।

आज ही के दिन हुआ था जन्म 
ग़ालिब का जन्म आगरा में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने पिता और चाचा को बचपन में ही खो दिया था, ग़ालिब का जीवनयापन मूलत: अपने चाचा के मरणोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था। वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सैन्य अधिकारी थे। ग़ालिब की पृष्ठभूमि एक तुर्क परिवार से थी और इनके दादा मध्य एशिया के समरक़न्द से सन् 1750  के आसपास भारत आए थे। उनके दादा मिर्ज़ा क़ोबान बेग खान अहमद शाह के शासन काल में समरकंद से भारत आए। उन्होने दिल्ली, लाहौर व जयपुर में काम किया और अन्ततः आगरा में बस गए। उनके 2 पुत्र व 3 पुत्रियां थी। मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग खान व मिर्ज़ा नसरुल्ला बेग खान उनके 2 पुत्र थे।

उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर 
मिर्जा गालिब उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है। साथ ही फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इनको दिया जाता है। यद्दपि इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी "मीर" भी इसी वजह से जाना जाता है। 

13 वर्ष की आयु में हो गया था विवाह 
13 वर्ष की आयु में उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली चले गए थे। जहां उनकी तमाम उम्र बीती। अपने पेंशन के सिलसिले में उन्हें कोलकाता कि लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी, जिसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है।

कई खिताबों से नवाजा गया 
ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उन्हें दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला।

उनके द्वारा लिखे कुछ मशहूर शेर-

“मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले”

“दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई”

“इश्क पर ज़ोर नहीं है,
ये वो आतिश गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने”

”उनके देखने से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है”

“दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है”

“इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के”

“इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने गालिब,
अब कोई प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूं मैं”
 

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