SC/ ST का उप-वर्गीकरण करना जायज- कोटा के अंदर कोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

Edited By Ramkesh,Updated: 01 Aug, 2024 01:03 PM

sub classification of sc st is justified  supreme court s important decision

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार ईवी चिन्नैया मामले में 2004 के फैसले को पलट दिया है और कोटा के अंदर कोटा को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की संविधान पीठ ने  6:1 के बहुमत से फैसला सुनाते...

लखनऊ/ दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार ईवी चिन्नैया मामले में 2004 के फैसले को पलट दिया है और कोटा के अंदर कोटा को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की संविधान पीठ ने  6:1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण करना जायज है। सिर्फ जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस पर असहमति जताई है। कोर्ट ने कि राज्यों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्यों को नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है?

SC/ ST का उप-वर्गीकरण करना जायज राज्य का अधिकार
उच्चतम न्यायालय ने ईवी चिन्नैया मामले में 2004 के फैसले को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति सजातीय वर्ग बनाते हैं।  न्यायमूर्ति बी आर गवई ने अलग दिए फैसले में कहा कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए।  ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए।

न्यायमूर्ति गवई ने अलग फैसला दिया
पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे। पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें से मुख्य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की है जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गयी है। सीजेआई ने अपने और न्यायमूर्ति मिश्रा की ओर से फैसला लिखा। चार न्यायाधीशों ने अपने-अपने फैसले लिखे जबकि न्यायमूर्ति गवई ने अलग फैसला दिया है।

कोटा के अंदर कोटा देने के लिए 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक
 उच्चतम न्यायालय ने आठ फरवरी को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें ई वी चिन्नैया फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया है। शीर्ष अदालत ने 2004 में फैसला सुनाया था कि सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेलने वाले एससी समुदाय सजातीय वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ‘ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य' मामले में 2004 के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने के संदर्भ में सुनवाई कर रही है, जिसमें यह कहा गया था कि एससी और एसटी सजातीय समूह हैं। फैसले के मुताबिक, इसलिए, राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों को कोटा के अंदर कोटा देने के लिए एससी और एसटी के अंदर वर्गीकरण पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं। 

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