Edited By Mamta Yadav,Updated: 25 May, 2023 10:47 PM
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मथुरा (Mathura) की एक अदालत (Court) ने बृहस्पतिवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद (Sri Krishna Janmabhoomi Shahi Idgah dispute) से जुड़े मामले की पोषणीयता पर अगली सुनवाई (Next hearing) ग्रीष्मा अवकाश के बाद...
मथुरा,Sri Krishna Janmabhoomi Case: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मथुरा (Mathura) की एक अदालत (Court) ने बृहस्पतिवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद (Sri Krishna Janmabhoomi Shahi Idgah dispute) से जुड़े मामले की पोषणीयता पर अगली सुनवाई (Next hearing) ग्रीष्मा अवकाश के बाद 12 जुलाई को तय की है।
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद को लेकर दायर मुकदमे की पोषणीयता पर दलीलें पेश करते हुए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील ने बृहस्पतिवार को सिविल जज की अदालत से कहा कि यह मामला सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि इसे लेकर 1968 में ही समझौता हो गया था। जिला सरकारी वकील संजय गौड़ के अनुसार, बचाव पक्ष के वकील जी पी निगम ने भी अदालत को बताया कि दोनों पक्षों के बीच समझौते को कानून के अनुसार एक नए मुकदमे के माध्यम से चुनौती नहीं दी जा सकती है और वादी केवल समझौते के खिलाफ अपील कर सकते हैं और वह भी केवल तीन महीने की निर्धारित समय सीमा के अंदर। एक अधिवक्ता ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में सिविल जज सीनियर डिवीजन न्यायालय में तकरीबन एक ही प्रकृति वाले 10 मामलों की सुनवाई थी, लेकिन अदालत का समय समाप्त होने तक केवल एक ही मामले पर बहस जारी रही, इसलिए अदालत ने अगली सुनवाई ग्रीष्म अवकाश के बाद 12 जुलाई को तय की है।
उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद को लेकर भिन्न-भिन्न लोगों द्वारा दाखिल किए गए मुकदमों में से एक ही प्रकृति (वाद की पोषणीयता को लेकर उठे नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा सात नियम 11) के 10 मामलों की सुनवाई की जानी थी। प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता तनवीर अहमद ने बताया कि बृहस्पतिवार को मनीष यादव के दावे पर पोषणीयता संबंधी बहस हुई। उन्होंने व दूसरे प्रतिवादी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से अधिवक्ता जीपी निगम तथा नीरज शर्मा ने दावे का विरोध करते हुए मामले की सुनवाई न किए जाने के तर्क प्रस्तुत किए। उन सभी का कहना था कि चूंकि वादी ने अपने दावे में भगवान श्रीकृष्ण के वंशज होने का दावा किया है, परंतु इस संबंध में कोई भी साक्ष्य या मान्य तर्क पेश नहीं किया है इसलिए यह मामला सुने जाने योग्य नहीं है।
ईदगाह पक्ष मामले को लंबा खींचना चाहता है
अहमद ने बताया कि इस दौरान अन्य वादियों की ओर से उनके पैरोकार/अधिवक्तागण भी मौके पर मौजूद थे। इनमें मुकेश खंडेलवाल, विजय बहादुर सिंह, हरीशंकर जैन, महेंद्र प्रताप सिंह, राजेंद्र माहेश्वरी, शिशिर चतुर्वेदी, दीपक देवकीनन्दन शर्मा, राजकुमार अग्रवाल, शैलेश दुबे, गोपाल खण्डेलवाल, अबरार अहमद आदि उपस्थित थे। इन सभी की ओर से सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में दावा दायर कर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ या संस्थान एवं शाही ईदगाह इंतजामिया कमेटी के बीच सन् 1968 में सम्पन्न हुए समझौते को अमान्य एवं अवैध घोषित करते हुए ईदगाह को वहां से हटाने व उक्त भूमि उसके वास्तविक मालिक मंदिर ट्रस्ट को सौंपे जाने की मांग की गई है। सिविल जज सीनियर डिवीजन (त्वरित अदालत) में चल रहे एक अन्य वाद में महेंद्र प्रताप सिंह एवं राजेंद्र माहेश्वरी द्वारा दाखिल वाद में दावा किया गया है कि मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासनकाल में ना केवल प्राचीन केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कराकर उसके स्थान पर ईदगाह का निर्माण कराया, अपितु मंदिर में स्थापित ठाकुरजी के विग्रहों को आगरा की बेगम मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफन करा दिया था। उन्होंने अपने कथन की पुष्टि के लिए प्राचीन इतिहास की अनेक पुस्तकों का हवाला देते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से तस्दीक कराकर उक्त प्रतिमाओं को वहां से खुदवाकर वापस मंदिर में स्थापित कराने की मांग की है। अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने दावा किया कि ईदगाह पक्ष इस मामले में शामिल होकर मामले को लंबा खींचना चाहता है।