Unnao rape case: जेल में ही रहेंगे कुलदीप सेंगर, Supreme Court ने HC के जमानत आदेश पर लगाई रोक, जानिए सुप्रीम फैसले की पूरी बात

Edited By Purnima Singh,Updated: 29 Dec, 2025 07:24 PM

kuldeep sengar will remain in jail in unnao rape case

उन्नाव रेप केस में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत और सजा निलंबन के खिलाफ CBI की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई ....

Unnao rape case : उन्नाव रेप केस में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत और सजा निलंबन के खिलाफ CBI की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस सूर्या कांत, जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने मामले को गंभीर मानते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के संकेत दिए हैं।

“यह बेहद भयावह मामला”
CBI की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि यह “बेहद भयावह मामला” है, जिसमें पीड़िता की उम्र घटना के समय मात्र 15 वर्ष थी। उन्होंने बताया कि ट्रायल के दौरान IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 5/6 के तहत आरोप तय हुए थे और सेंगर को दोनों मामलों में दोषी ठहराया गया है। SG ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट निष्कर्ष दिया था कि पीड़िता 16 साल से कम उम्र की थी और इसी आधार पर सजा सुनाई गई।

“हम 15 साल की बच्ची के प्रति जवाबदेह”
SG ने कोर्ट को बताया कि सजा के समय ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(i) के तहत दोषसिद्धि की थी, जो अपराध की तारीख पर कानून में मौजूद थी। यह बलात्कार का गंभीर (एग्रेवेटेड) रूप है, जिसमें न्यूनतम 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है, यहां तक कि जैविक जीवन तक। उन्होंने जोर देकर कहा, “हम 15 साल की उस बच्ची के प्रति जवाबदेह हैं।” SG ने यह भी बताया कि सेंगर पीड़िता के पिता की हत्या समेत अन्य मामलों में भी दोषी है और फिलहाल जेल में है।

PunjabKesari

इस पर CJI सूर्या कांत ने सवाल किया कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में IPC के तहत हुई दोषसिद्धि पर स्पष्ट रूप से विचार क्यों नहीं किया और ऐसा प्रतीत होता है कि फैसला केवल POCSO के आधार पर किया गया। CJI ने कहा कि यह एक गंभीर कानूनी मुद्दा है, जिस पर विचार आवश्यक है। जस्टिस जे.के. महेश्वरी ने भी टिप्पणी की कि हाईकोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(i) पर विचार नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने सजा निलंबन का एक आधार यह माना कि सेंगर लोक सेवक नहीं है।

बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन. हरिहरन और सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि आरोप IPC की धारा 376(1) के तहत तय किए गए थे और अभियुक्त को उसी आरोप का जवाब देना था। उन्होंने कहा कि किसी दंडात्मक कानून में दूसरे कानून की परिभाषा को अपने आप लागू नहीं किया जा सकता और अब यह कहना कि विधायक व्यापक अर्थ में लोक सेवक है, बहुत देर हो चुकी है। हरिहरन ने यह भी कहा कि वह पहले ही करीब 10 साल की सजा काट चुके हैं।

सुनवाई के दौरान CJI सूर्या कांत ने कहा कि मामला विचार योग्य है। सामान्य सिद्धांत यह है कि एक बार किसी को रिहा कर दिया जाए तो उसे सुना जाता है, लेकिन इस मामले में सेंगर अभी भी हिरासत में है। पीठ ने संकेत दिए कि वह दिल्ली हाईकोर्ट के सजा निलंबन और जमानत आदेश पर रोक लगा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट का लिखित आदेश......
कोर्ट ने कहा है कि अमूनन ज़मानत के ट्रायल या हाई कोर्ट फैसले पर SC बिना आरोपी का पक्ष सुने कोई रोक का आदेश पास नहीं करता लेकिन इस मामले में कुछ तथ्य और हालात एकदम अलग है। सेंगर एक दूसरे मामले में ( पीड़ित के पिता की हिरासत में मौत के मामले में भी) जेल की सज़ा काट रहा है। उस वाले केस में ज़मानत की अर्जी पर भी कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा हुआ है। इसको देखते हुए हम हाई कोर्ट के सज़ा निलंबित करने के आदेश पर रोक लगा रहे हैं। (इसका मतलब यह कि सेंगर अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएगा)

Related Story

Trending Topics

img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!