Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 12 Feb, 2020 12:00 PM
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने नौकरियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण पर आए उच्चतम न्यायालय के फैसले की समीक्षा के लिए मंगलवार को शीर्ष अदालत का रुख किया। उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड...
नई दिल्लीः भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने नौकरियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण पर आए उच्चतम न्यायालय के फैसले की समीक्षा के लिए मंगलवार को शीर्ष अदालत का रुख किया। उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार द्वारा पांच सितंबर 2012 को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को बिना आरक्षण दिए लोकसेवा के पदों को भरने के निर्णय के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सात फरवरी को फैसला सुनाया था।
सरकार के फैसले को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसने इसे खारिज कर दिया। याचिका में आजाद और सह याचिकाकर्ता बहादुर अब्बास नकवी ने दावा किया है कि शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में राज्यों को अनुसूचित जातियों (एसटी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करने का अधिकार दे दिया है। याचिका में राज्य सरकार द्वारा आरक्षण नहीं देने की स्थिति में प्रतिनिधित्व संबंधी आंकड़े जुटाने की बाध्यता नहीं होने के उच्चतम न्यायालय के आदेश की समीक्षा करने का अनुरोध करते हुए कहा गया कि इससे ‘‘न केवल असमानता बढ़ेगी बल्कि यह असंवैधानिक भी है।''
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि यह फैसला एससी, एसटी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के शोषण के लिए हथियार का काम करेगा और जिससे वे समाज में और हाशिए पर चले जाएंगे एवं यह संविधान के खिलाफ है जो इन समुदायों के हितों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा, ‘‘फैसला संविधान के अनुच्छेद 46 के खिलाफ भी है जो एससी, एसटी और समाज के कमजोर वर्गों के हितों को प्रोत्साहित करता है। याचिका के मुताबिक, ‘‘फैसले में उठे सवाल पर बड़ी पीठ में विचार किया जाना चाहिए और न्यायालय की राय हो तो इस फैसले पर संविधान पीठ में पुनर्विचार होना चाहिए।''
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने सितंबर 2012 में उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को वैध करार देते हुए कहा कि उसका फैसला है कि सरकार पदोन्नति में आरक्षण के लिए बाध्य नहीं है और उच्च न्यायालय को राज्य सरकार के फैसले को अवैध करार नहीं देना चाहिए। आरक्षण पर संवैधानिक प्रावधानों का संदर्भ देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘यह राज्य सरकारों को फैसला लेना है कि सरकारी पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण देना है या नहीं।''