Edited By Ramkesh,Updated: 30 Dec, 2025 05:47 PM
जोड़ों से जुड़ी गंभीर एवं दीर्घकालिक समस्याओं के प्रति आमजन को जागरूक करने तथा आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कनक मैटरनिटी होम एंड ट्रामा सेंटर, अकबरपुर में कुल्हा, कंधा एवं घुटना प्रत्यारोपण विषय पर एक विशेष...
अम्बेडकर नगर (कार्तिकेय द्विवेदी): जोड़ों से जुड़ी गंभीर एवं दीर्घकालिक समस्याओं के प्रति आमजन को जागरूक करने तथा आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कनक मैटरनिटी होम एंड ट्रामा सेंटर, अकबरपुर में कुल्हा, कंधा एवं घुटना प्रत्यारोपण विषय पर एक विशेष जन-जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
डॉ. आलोक पाण्डेय की अध्यक्षता में हुई संगोष्ठी
संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. आलोक पाण्डेय ने की। उन्होंने उपस्थित लोगों को जोड़ों से संबंधित बीमारियों, उनके कारणों तथा आधुनिक उपचार विधियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
बढ़ती उम्र जोड़ों के क्षरण का बड़ा कारण
डॉ. पाण्डेय ने कहा कि बढ़ती उम्र जोड़ों के क्षरण का सबसे बड़ा कारण है। समय के साथ हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज धीरे-धीरे घिसने लगता है, जिससे जोड़ों में दर्द और अकड़न की समस्या उत्पन्न होती है।
अन्य कारण भी बढ़ा रहे समस्या
उन्होंने बताया कि अत्यधिक वजन, असंतुलित जीवनशैली, शारीरिक श्रम की कमी, लंबे समय तक एक ही स्थिति में बैठना या खड़े रहना, बार-बार चोट लगना तथा सड़क दुर्घटनाएं भी जोड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचाती हैं। इसके अलावा अनुवांशिक कारण, गठिया, मधुमेह तथा कैल्शियम व विटामिन-डी की कमी से भी जोड़ों की समस्या तेजी से बढ़ती है।
शुरुआती लक्षणों को न करें नजरअंदाज
डॉ. पाण्डेय ने बताया कि जोड़ों की समस्या की शुरुआत हल्के दर्द और अकड़न से होती है। सुबह उठते समय या लंबे समय तक बैठे रहने के बाद चलने में परेशानी, घुटनों या कंधों में जकड़न, सीढ़ियां चढ़ते-उतरते समय दर्द और हल्की सूजन इसके शुरुआती लक्षण हैं। कई बार मरीज इन्हें सामान्य थकान समझकर अनदेखा कर देते हैं।
गंभीर अवस्था में बढ़ जाती है परेशानी
समय पर इलाज न होने पर दर्द असहनीय हो जाता है। चलने-फिरने में अत्यधिक कठिनाई, जोड़ों में तेज सूजन, सूजन के साथ आवाज आना, हाथ-पैर मोड़ने में दिक्कत तथा दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाना इसके गंभीर लक्षण हैं। कई मामलों में मरीज बिस्तर तक सीमित हो जाता है।
आधुनिक जांच पद्धतियों की दी जानकारी
जोड़ों की सही स्थिति जानने के लिए एक्स-रे से हड्डियों की संरचना की जांच की जाती है, जबकि एमआरआई और सीटी स्कैन से जोड़ों, लिगामेंट और कार्टिलेज की विस्तृत स्थिति का पता लगाया जाता है। रक्त जांच के माध्यम से गठिया सहित अन्य रोगों की पुष्टि कर सटीक उपचार संभव होता है।
कब पड़ती है सर्जरी की जरूरत
डॉ. पाण्डेय ने बताया कि जब दवाइयों, फिजियोथेरेपी और अन्य सामान्य उपचारों से राहत नहीं मिलती और मरीज की दिनचर्या पूरी तरह प्रभावित होने लगती है, तब सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। जब जोड़ों का कार्टिलेज पूरी तरह नष्ट हो जाता है और दर्द असहनीय हो जाता है, तब कुल्हा, कंधा या घुटना प्रतिरोपण ही स्थायी समाधान बनता है।
सावधानियां और जीवनशैली पर जोर
उन्होंने जोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित आहार, नियमित हल्का व्यायाम, वजन नियंत्रण और सही बैठने-चलने की आदतों को अपनाने की सलाह दी। साथ ही बिना चिकित्सकीय परामर्श के दर्द निवारक दवाओं के सेवन से बचने और समय-समय पर जांच कराने पर जोर दिया।
प्रतिरोपण के बाद फिर सामान्य जीवन संभव
प्रतिरोपण के बाद की जीवनशैली पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि चिकित्सक की सलाह के अनुसार फिजियोथेरेपी, नियमित व्यायाम और सावधानियों का पालन करने से मरीज शीघ्र स्वस्थ होकर पुनः सामान्य एवं सक्रिय जीवन जी सकता है।
एक दशक में कर चुके हैं हजार से अधिक प्रतिरोपण
डॉ. आलोक पाण्डेय ने बताया कि वे पिछले एक दशक में लगभग एक हजार से अधिक कुल्हा एवं घुटना प्रतिरोपण सफलतापूर्वक कर चुके हैं। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से डॉ नुपुर पाण्डेय, ब्रह्मप्रकाश पाण्डेय, डॉ मयंक सिंह मौजूद रहे। वहीं सुधा पाण्डेय, सवारी देवी,मीरा सिंह ,इसरार अहमद,बासिद,अरशद, ख़ान, बजरंगीलाल, सूरज,प्रभावती,लक्ष्मी सहित दो सौ से अधिक संख्या में मरीज मौजूद रहे।