अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने CM योगी से मुलाकात की, परिवार भी रहा मौजूद

Edited By Ramkesh,Updated: 25 Aug, 2025 04:15 PM

astronaut shubhanshu shukla met cm yogi family was also present

अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करके लौटे पहले भारतीय ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने सोमवार को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में मुलाकात की है। इस दौरान शुभांशु शुक्ला का परिवार भी मौजूद रहा।

लखनऊ: अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करके लौटे पहले भारतीय ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने सोमवार को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में मुलाकात की है। इस दौरान शुभांशु शुक्ला का परिवार भी मौजूद रहा। इसके पहले उन्होंने छात्रों को सलाह देते हुये कहा कि चुनौतियों से घबराने के बजाय उनका डट कर सामना करने से सफलता शत प्रतिशत मिलती है। सिटी मांटेसरी स्कूल (सीएमएस) विस्तार की शाखा में अपने अभिनंदन समारोह के दौरान उन्होने युवा छात्रों से कहा ‘‘ जब भी कोई नई चुनौती आपके सामने आए, तो आप उसे हाथ में लीजिए। यह मत सोचिए कि वह होगा या नहीं होगा। आप जब उस काम को आगे बढ़ाएंगे तो सफलता आपको निश्चित मिलेगी।

उन्होने कहा कि वर्ष 2040 में चांद पर जाने की बात हो रही है। वह चाहते हैं कि बच्चे इतनी तैयारी करें कि उनके साथ आए। इस दौरान उन्होंने बच्चों से कहा कि मेहनत से पढ़ाई करें, अनुशासन और धैर्य रखें, जिससे आपका लक्ष्य आपको दिखे। मीडिया से मुखातिब शुभांशु ने कहा ‘‘ अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव काफी यूनिक था। उस द्दश्य को इमेजिन करना बड़ा मुश्किल है। बगैर ग्रेविटी के रहना अपने आप में एक चुनौती है। वहां पर ग्रेविटी ना होकर शरीर को काफी एडजस्ट करना पड़ता है। एडजस्टमेंट के बाद वहां पर वातावरण नॉर्मल हो जाता है।

उन्होंने कहा ‘‘ माइक्रोग्रैविटी भारत के लिए नए द्वार खोलती है। सिफर् अंतरिक्ष विज्ञान में ही नहीं, बल्कि चिकित्सा, सामग्री अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में भी। जब हम यह समझते हैं कि शून्य गुरुत्वाकर्षण में मानव शरीर और वस्तुयें कैसे व्यवहार करती हैं, तो हमें ऐसे नवाचार मिलते हैं जो धरती पर जीवन को बदल सकते हैं। भारत के लिए यह केवल अन्वेषण नहीं है, बल्कि आने वाली पीढि़यों को सशक्त बनाने वाले समाधान खोजने का अवसर है।

शुभांशु ने कहा कि अंतरिक्ष से भारत अच्छा दिखता है। अंतरिक्ष में जाने का मिशन अपने आप में चैलेंज है। एक अन्य सवाल पर उन्होंने कहा कि एस्ट्रोनॉट तो सामने देखते हैं लेकिन उनके पीछे बहुत बड़ी टीम होती है। उन्होंने कहा कि यह बहुत चुनौती भरा होता है। इनको अचीव करते समय आप बहुत सारी प्रॉब्लम सॉल्व करते हैं। जिनके बारे में आपको मालूम नहीं था कि आप कर सकते हैं। एक्सपेरिमेंट के चलते माइक्रो गो की प्रॉब्लम खत्म होगी। उन्होंने कहा ‘‘ मुझे लगता है की पहली बार भारतीय एक्सपेरिमेंट वहां पर जाकर किये हैं। उन्होंने कहा कि बदलते भारत और विकसित भारत का जो 2047 का सपना है। वह किसी एक चीज से अचीव नहीं होगा। बल्कि उसके लिए विभिन्न पहलुओं के जरिये रोड मैप मिलेगा की जहां जाना चाहते हैं वहां हम कैसे पहुंचे। इसके लिए स्पेस मिशन का हर एक्सपेक्ट को इस्तेमाल किया जा सकता है। टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट में, यूथ को इंस्पायर करने में, साइंस टेक्नोलॉजी में। मुझे लगता है कि अगर हम हर पहलू को देखेंगे तो उससे हमें एक रोड मैप मिलेगा।

 एक अन्य सवाल पर उन्होंने कहा ‘‘ मेरी आस्था मेरी टीम में है। मुझे लगता है कि ग्राउंड पर जो इतनी बड़ी टीम लगी है, कितनी बड़ी आस्था उनकी भी लगी है। मैं कुछ समय पहले दिल्ली आया था। वहां पर काफी लोगों से मुलाकात हुई और वहां पर भी सम्मान हुआ। मैं जब से लखनऊ वापस आया हूं, मुझे जिस तरीके का सपोटर् मिल रहा है। मैंने कल्पना नहीं की थी। हमें आगे जो काम करना है, उसके लिए आज मुझे काफी साहस मिला है।'' इससे पूर्व छात्रों के साथ मुखातिब होते हुए शुभांशु शुक्ला ने छात्रों को अंतरिक्ष यात्रा की चुनौतियों और सीख के बारे में बताया। उन्होंने कहा ‘‘ आप सब ही हमारी अनोखी ताकत हैं, आप हमें ग्लोबल स्पेस एक्सपीडिशन में मदद करेंगे। जब कोई अंतरिक्ष में जाता है तो वह एक नए जीवन की तरह होता है। शरीर ने कभी भी शून्य गुरुत्वाकर्षण का अनुभव नहीं किया होता।

वहां पहुँचकर दिल धीरे-धीरे धड़कना शुरू करता है। मानव शरीर एक उपन्यास की तरह है, जो बहुत जल्दी नए वातावरण में ढल सकता है।'' शुक्ला ने बताया कि मिशन के दौरान सात भारतीय और चार वैश्विक प्रयोग किए गए, जिनका मकसद वैज्ञानिक खोजों को आगे बढ़ाना था। आपात स्थितियों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष में खतरे अचानक उत्पन्न हो सकते हैंजैसे फायर अलार्म बजना, फॉल्स अलार्म आना, ज़मीन से चेतावनी मिलना, या फिर छोटी-छोटी तैरती वस्तुएँ जो कभी-कभी नुकीली हो सकती हैं। धरती पर लौटने के अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जब आप वापस आते हैं तो दिमाग भूल जाता है कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है। सब कुछ बहुत भारी लगने लगता है।

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