Edited By Mamta Yadav,Updated: 13 Aug, 2025 04:25 PM

अक्सर ऐसी कहानियाँ इतिहास की धूल भरी अलमारियों में दबी रहती हैं, लेकिन बाराबंकी जिले के हड़हा गांव का कुछ ऐसा ही रहस्य है जिसे सुनते ही भीतर एक जिज्ञासा जाग उठती है। हड़हा स्टेट कि मिट्टी से उसी समय की आहट आती है जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने यहां...
Barabanki News, (अर्जुन सिंह): अक्सर ऐसी कहानियाँ इतिहास की धूल भरी अलमारियों में दबी रहती हैं, लेकिन बाराबंकी जिले के हड़हा गांव का कुछ ऐसा ही रहस्य है जिसे सुनते ही भीतर एक जिज्ञासा जाग उठती है। हड़हा स्टेट कि मिट्टी से उसी समय की आहट आती है जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने यहां गुप्त आश्रय ढूंढा था। गांव की शांत पगडण्डियों में रात की रहसानुमा चुप्पी में योजनाएं बनती थीं, हथियार तैयार होते थे और फिर गुप्त मार्गों से आज़ाद हिंद फौज तक पहुंचाए जाते थे। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” का जुनून यहाँ की हवाओं में घुला हुआ था, ऐसा मानो धरती खुद कह रही हो यह स्थान आज़ादी की चिंगारी का केंद्र रहा है।

हथियार बनते, सैनिक प्रशिक्षित होते और योजनाएं तैयार होतीं
राजा प्रताप बहादुर सिंह जो स्व. राजीव कुमार सिंह के पिता थे उन्होंने इस गुप्त अभियान का साहसिक नेतृत्व किया। आज भी उनके वंशज कुंवर रिंकू सिंह उस दौर की पूरी कहानी को अपने मुंह से बयां करते हैं जो हड़हा स्टेट की उस गौरवशाली विरासत की याद दिलाता है। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम के उग्र दौर में नेताजी को ऐसे छिपे और सुरक्षित स्थान की आवश्यकता थी जहाँ हथियार बनते, सैनिक प्रशिक्षित होते और योजनाएं तैयार होतीं। राजा प्रताप बहादुर सिंह ने इस जिम्मेदारी को अपनी निष्ठा से निभाया। गांव को चारों ओर से घने बांस के जंगलों ने अंग्रेजों की दृष्टि से इसे पूरी तरह छुपाया हुआ था।

गुप्त मार्गों से आज़ाद हिंद फौज तक पहुंचाए जाते थे हथियार
गांव के लोगों की मानें तो अंधेरी रातों में यहां बम, देसी पिस्तौल और दूसरे हथियार चुपचाप बनाए जाते थे और फिर गुप्त मार्गों से आज़ाद हिंद फौज तक पहुंचाए जाते थे। यह सिलसिला करीब दो वर्षों तक चलता रहा जब तक अंग्रेजों को भनक न लगी। फिर एक दिन अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई जिसके बाद यहां छापेमारी हुई कई लोग गिरफ्तार और प्रताड़ित हुए लेकिन किसी ने भी नेताजी की उपस्थिति का राज नहीं खोला। इस अदम्य साहस ने हड़हा को स्वतंत्रता संग्राम की अमर गाथा बना दिया।

यहां गुप्त रूप से गन और हथियार छुपाकर रखे जाते थे
नेताजी की याद में 24 नवंबर 1938 को राजा प्रताप बहादुर सिंह ने गांव में उनकी प्रतिमा स्थापित करवाई संकेत के तौर पर कि यह मिट्टी किन जीवंत आदर्शों की गवाह थी। वर्तमान वंशज कुंवर रिंकू सिंह भावुकता से कहते हैं कि हमारे परबाबा ने नेताजी की हर आवश्यकता की व्यवस्था की उनका ठहरना, भोजन, धन, सब कुछ यहां किया जाता था। अंग्रेजों को भ्रमित करने के लिए यह गांव काफी उपयुक्त था क्योंकि यह घने जंगलों से काफी घिरा हुआ था। यहां गुप्त रूप से गन और हथियार छुपाकर रखे जाते थे। बता दें, हड़हा आज भी उस गौरवपूर्ण अतीत का साक्षी है जहां की मिट्टी में आज़ादी की तपिश और नेताजी की प्रेरणा अब भी महसूस की जा सकती है।