Edited By Prashant Tiwari,Updated: 13 Jan, 2023 02:51 PM
भगवान भास्कर के उत्तरायण से दक्षिणायन में आते ही पूरे देश में त्यौहारों का मौसम शुरु हो गया है।पूरा देश उत्तरायण, मकर संक्रांति, भोगी, बिहू, पोंगल जैसे अनेक पर्व मनाने जा रहा है।
गोरखपुर (रुद्र प्रताप सिंह) : भगवान भास्कर के दक्षिणायन से उत्तरायण में आते ही पूरे देश में त्यौहारों का मौसम शुरु हो गया है। पूरा देश उत्तरायण, मकर संक्रांति, भोगी, बिहू, पोंगल जैसे अनेक पर्व मनाने जा रहा है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे है गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेले के परंपरा के बारे में...
क्या है मान्यता?
गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा त्रेतायुग से मानी जाती है। मान्यता है कि उस समय आदि योगी गुरु गोरखनाथ एक बार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित मां ज्वाला देवी के दरबार मे पहुंचे। मां ने उनके भोजन का प्रबंध किया। कई प्रकार के व्यंजन देख बाबा ने कहा कि वह तो योगी हैं और भिक्षा में प्राप्त चीजों को ही भोजन रूप में ग्रहण करते हैं। उन्होंने मां ज्वाला देवी से पानी गर्म करने का अनुरोध किया और स्वयं भिक्षाटन को निकल गए। भिक्षा मांगते हुए वह गोरखपुर आ पहुंचे और राप्ती और रोहिन के तट पर जंगलों में बसे इस स्थान पर धूनी रमाकर साधनालीन हो गए। उनका तेज देख तभी से लोग उनके खप्पर में अन्न (चावल, दाल) दान करते रहे। इस दौरान मकर संक्रांति का पर्व आने पर यह परंपरा खिचड़ी पर्व के रूप में परिवर्तित हो गई। तब से बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने का क्रम हर मकर संक्रांति पर अहर्निश जारी है। कहा जाता है कि उधर ज्वाला देवी के दरबार मे बाबा की खिचड़ी पकाने के लिए आज भी पानी उबल रहा है।
पहली खिचड़ी का भोग पीठाधीश्वर लगाते है
मकर संक्रांति के दिन भोर में चार बजे सबसे पहले गोरक्षपीठ की तरफ से पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ खिचड़ी चढ़ाकर बाबा को भोग अर्पित करते हैं। चूंकी योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के साथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी है। इसलिए पहला भोग वहीं लगाएंगे। तत्पश्चात नेपाल राजपरिवार की ओर से आई खिचड़ी बाबा को चढ़ाई जाती है। इसके बाद मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं और जनसामान्य की आस्था खिचड़ी के रूप में निवेदित होनी शुरू हो जाती है। खिचड़ी महापर्व को लेकर मंदिर व मेला परिसर सज धजकर तैयार हो रहा है। यहां श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला एक दिन पूर्व ही प्रारम्भ हो जाता है। मंदिर प्रबंधन की तरफ से उनके ठहरने और अन्य सुविधाओं का पूरा इंतज़ाम किया जाता है।
मंदिर का अन्न जरूरतमंदों में वितरित किया जाता है
लोक आस्था का उफान देखना हो तो मकर संक्रांति पर चले आइए गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर। यहां मकर संक्रांति से शुरू होकर माह भर चलने वाला खिचड़ी मेला बेमिसाल है। यह मेला श्रद्धा, मनोरंजन और रोजगार का संगम भी है। पूरी प्रकृति को ऊर्जस्वित करने वाले सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर खिचड़ी चढ़ाने की त्रेतायुगीन यह अनूठी परंपरा पूरी तरह लोक को समर्पित है। गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी के रूप में चढ़ाए जाने वाला अन्न वर्षभर जरूरतमंदों में वितरित किया जाता है। मंदिर के अन्न क्षेत्र में कभी भी कोई जरूरतमंद पहुंचा, खाली हाथ नहीं लौटा। ठीक वैसे ही, जैसे बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाकर मन्नत मांगने वाला कभी निराश नहीं होता।
यहां टूट जाती है मजहब की दिवार
गोरखनाथ मंदिर सामाजिक समरसता का ऐसा केंद्र है जहां जाति, पंथ, महजब की बेड़ियां टूटती नजर आती हैं। इसके परिसर में क्या हिंदू, क्या मुसलमान, सबकी दुकानें हैं। यानी बिना भेदभाव सबकी रोजी रोटी का इंतजाम है। यही नहीं, मंदिर परिसर में माहभर से अधिक समय तक लगने वाला खिचड़ी मेला भी जाति-धर्म के बंटवारे से इतर हजारों लोगों की आजीविका का माध्यम बनता है। मंदिर परिसर में नियमित रोजगार करने वालों से लेकर मेला में दुकान लगाने वालों तक, बड़ी भागीदारी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की होती है। उन्होंने कभी कोई भेदभाव महसूस नहीं किया बल्कि अपनेपन के भाव से विभोर होते रहते हैं। मेले में खरीदारी से लेकर मनोरंजन के साधनों तक भरपूर इंतज़ाम होता है।