भारत के लिए सिरदर्द बन गया है अमेरिका टैरिफ, बनारस की कालीन फैक्ट्रियों में पसरा सन्नाटा! नए आर्डरों का टोटा

Edited By Ramkesh,Updated: 27 Aug, 2025 03:17 PM

american tariff has become a headache for india

अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ (शुल्क) के प्रभावी होने के बाद भारत सरकार एवं कालीन फैक्ट्रियों की टेंशन बढ़ गई है। अमेरिकी शुल्क का सबसे ज्यादा असर कपड़ा, रत्न और आभूषण, चमड़ा, समुद्री उत्पाद और इंजीनियरिंग क्षेत्र पर होगा। इसी कड़ी...

वाराणसी: अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ (शुल्क) के प्रभावी होने के बाद भारत सरकार एवं कालीन फैक्ट्रियों की टेंशन बढ़ गई है। अमेरिकी शुल्क का सबसे ज्यादा असर कपड़ा, रत्न और आभूषण, चमड़ा, समुद्री उत्पाद और इंजीनियरिंग क्षेत्र पर होगा। इसी कड़ी में बनारस की सिल्क, भदोही-मिर्जापुर की कालीन और दरी फैक्ट्रियों में काम सिमट गया है। त्योहारी सीजन के नजदीक होने के बावजूद इस समय अधिकतर कारखानों में सन्नाटा पसरा है। क्योंकि नए आर्डर नहीं मिलने से इन फैक्ट्रियों में कार्यरत हजारों कर्मचारियों को अगस्त माह का वेतन देकर सितंबर से छंटनी करने की तैयारी है। बीते सात अगस्त को 25 फीसदी टैरिफ लगाए जाने के बाद निर्यातकों को की टेंशन बढ़ गई है।

कालीन फैक्ट्रियों में काम सिमटा
अमेरिका द्वारा थोपे गये 50 फीसदी निर्यात शुल्क (टैरिफ) का वाराणसी में जोरदार तरीके विरोध किया गया। व्यापार मंडल अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा ने बताया कि अमेरिकी टैरिफ का काशी के व्यापारियों ने लहुराबीर स्थित आजाद पाकर् के पास पोस्टर जलाकर विरोध किया। बनारसी साड़ी अमेरिका में ऑनलाइन खूब बिकती है।

50 प्रतिशत टैरिफ लागू
टैरिफ के कारण कीमतें बढ़ने से ग्राहक बनारसी साड़ी खरीदने से हिचक सकते हैं। वहीं, बनारसी साड़ी व्यापारी संजीव मेहता ने बताया कि अभी तक ऑनलाइन सेवाओं के माध्यम से ग्राहक बनारसी साड़ी बुक करते हैं और कुरियर के जरिए माल भेजा जाता है, जिस पर सामान्य टैक्स लागू होता था। लेकिन अब 50 प्रतिशत टैरिफ लागू होने के बाद यह स्पष्ट नहीं है कि किन वस्तुओं पर कितनी ड्यूटी बढ़ेगी। हालांकि, इसका असर पड़ना तय है। ऐसे में भदोही-मिर्जापुर की कालीन उद्योग व्यापारी काफी परेशान है।

सरकार को अब हमें नए देशों की ओर रुख करना होगा
साड़ी व्यापारी संजीव मेहता ने बताया सरकार को अब हमें नए देशों की ओर रुख करना होगा। दुबई, रूस, दक्षिण अफ्रीका, यूरोपीय देश, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया में बाजार ढूंढ़ने होंगे। निर्यातक विवेक बरनवाल ने कहा कि कालीन उद्योग पर अमेरिका की नीतियों के चलते अब तक का सबसे बड़ा संकट आ गया है। निर्यातकों में गहरी चिंता है लेकिन सकारात्मक रूप से नये बाजार ढूंढ़ने होंगे, तभी इस समस्या से कुछ हद तक निजात मिल सकेगी।

 

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