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भारतीय बोध और सहज संवेदना से उत्पन्न है अलका सिन्हा का स्त्री-विमर्श : नरेश शांडिल्य

Edited By Imran,Updated: 18 Feb, 2025 07:00 PM

alka sinha s feminist discourse is born out of indian perception

राजधानी दिल्ली के द्वारका में साहित्यिक संस्था ‘हमकलम’ के तत्वावधान में प्रसिद्ध साहित्यकार अलका सिन्हा के काव्य-संग्रह ‘हैं शगुन से शब्द कुछ’ और डायरी ‘रूहानी रात और उसके बाद’ पर एक गहन परिचर्चा का आयोजन किया गया।

यूपी डेस्क: राजधानी दिल्ली के द्वारका में साहित्यिक संस्था ‘हमकलम’ के तत्वावधान में प्रसिद्ध साहित्यकार अलका सिन्हा के काव्य-संग्रह ‘हैं शगुन से शब्द कुछ’ और डायरी ‘रूहानी रात और उसके बाद’ पर एक गहन परिचर्चा का आयोजन किया गया।

इस परिचर्चा कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि-व्यंग्यकार अनिल जोशी ने कहा कि उनकी लेखनी स्वतः स्फूर्त है। डायरी में काव्यात्मकता रचना को सरस बनाती है, जबकि कविताओं में वैचारिक चिंतन भी बखूबी नजर आता है। मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध कवि-गजलकार नरेश शांडिल्य ने कहा कि उनकी कविताएं लोक अनुभवों को इस तरह समेटती हैं कि वे कविता का अभिन्न अंग बन जाते हैं। अलका जी के काव्य में लोक, सनातन और भारतीय संवेदना की शक्ति विद्यमान है। उनका स्त्री-विमर्श आयातित नहीं, बल्कि भारतीय बोध और सहज संवेदना से उत्पन्न है। 

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए शिक्षाविद डॉ. विजय कुमार मिश्र ने कहा कि अलका जी की कविताएं प्रेम, प्रकृति और परिवार से गहरे जुड़े हुए लोकगीतों की तरह हैं। उन्होंने 'दीप जला रे' कविता का उल्लेख करते हुए इसकी आत्मीय संवेदना और शिल्प की सुगढ़ता को महादेवी वर्मा की परंपरा से जोड़ा। उनका मानना था कि अलका जी की लेखनी छल-प्रपंच की राजनीति से दूर, सरलता में गहन सच्चाई खोजने का प्रयास है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में हिंदी अकादमी, दिल्ली के उपसचिव ऋषि कुमार शर्मा
ने ‘रूहानी रात और उसके बाद’ के अंशों का विश्लेषण करते हुए कहा कि इसमें ‘वीरगांव’ की एक संवेदनशील लड़की की अंतरंग अनुभूतियां उभरती हैं। ‘निर्भया कांड’ से उपजी बेचैनियों से लेकर गांव-घर की स्मृतियों तक, यह डायरी भावनाओं का सजीव दस्तावेज़ है। उन्होंने कहा कि अलका जी की भाषा और अभिव्यक्ति उच्चकोटि की हैं जिनमें नकारात्मकता के लिए कोई स्थान नहीं।

परिचर्चा की शुरुआत में शोध अध्येता आदित्य नाथ तिवारी ने 'हैं शगुन से शब्द कुछ' की कविताओं को पाठक के आत्मसंवाद का माध्यम बताया, जो कोविड त्रासदी की पृष्ठभूमि में सत्ता के अहंकार पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उन साधारण कर्मियों को रेखांकित करती हैं, जिनके बिना उस भयावह समय को पार कर पाना कठिन था। इस अवसर पर अलका सिन्हा ने उपस्थित साहित्यकारों और साहित्य-प्रेमियों का आत्मीय आभार व्यक्त किया और अपनी डायरी के एक मार्मिक अंश का पाठ किया।

कार्यक्रम का संचालन शोध एवं कला अध्येता विशाल पाण्डेय ने किया। 'हमकलम' संस्था की ओर से कहानीकार सुनीति रावत ने इस परिचर्चा को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक उपलब्धि बताते हुए सभी का धन्यवाद किया।  इस आयोजन में जापान के डॉ. वेदप्रकाश, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, त्रिलोक कौशिक, ममता किरण, अनीता सेठी वर्मा, सुनीता पाहूजा, शशिकांत, अनिल वर्मा मीत, ताराचंद नादान, कल्पना मनोरमा और पंजाबी साहित्यकार बलबीर माधोपुरी सहित अनेक साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति से यह एक अविस्मरणीय साहित्यिक उत्सव के रूप में अंकित हो गया।

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