Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 24 May, 2020 01:20 PM
मानवजाति ने धरती को अपनी स्वार्थ में बहुत अधिक प्रदूषित कर दिया है। आज समझ में नहीं आता कि कोरोना संकट के मद्देनजर लागू देशव्यापी लॉकडाउन अभिषाप है या वरदान। इस लॉकडाउन में प्रकृति...
वाराणसीः मानवजाति ने धरती को अपनी स्वार्थ में बहुत अधिक प्रदूषित कर दिया है। आज समझ में नहीं आता कि कोरोना संकट के मद्देनजर लागू देशव्यापी लॉकडाउन अभिषाप है या वरदान। इस लॉकडाउन में प्रकृति मुस्कुराहट बिखेर दी है वहीं गंगा नदी का जल इतना स्वच्छ हो गया है कि लहरों की गोद से चलीं गईं मछलियों की सात प्रजातियां भी घर लौट आई हैं।
50 साल बाद दिखा गंगा नदी में सुधार
बता दें कि लॉकडाउन के दौरान कई फैक्ट्रियां बंद रहीं जिससे रंगाई या अन्य प्रकार का केमिकल भी नदी में नहीं गिरा जिससे गंगा में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई है। जनता कर्फ्यू से लेकर अगले 40 दिनों तक गंगा में औसतन घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 9-10 के करीब रही। किसी किसी दिन ये 11 और 12 तक भी पहुंची। यही नहीं गंगा के रंग मे भी 50 साल बाद इतना सुधार दिखा है। इसका यह सुखद परिणाम रहा कि काशी की गंगा को छोड़कर चली गईं मछली की सात प्रजातियां एक बार फिर लौट कर आ गई हैं।
सभी मछलियों की है अपनी विशेषता
इस पर क्षेत्रीय नियंत्रण अधिकारी डॉक्टर कालिका सिंह बताते हैं कि ये बेहद चौंकाने वाली बात है जैसा कि ज्ञात है कि मछलियों की वो सात प्रजातियां जो किसी जमाने में काशी की गंगा में दिखाई देती थीं। लेकिन प्रदूषण का लेवल इतना अधिक बढ़ गया कि ये दिखना बंद हो गईं। सुखद और आश्चर्यजनक है कि वो सातों प्रजातियां फिर से लौट आई हैं। इन सात नस्लों में करौंछी, भाकुरी, सिंघा, बैकरा, घेघरा, नयन और रीठ प्रजाति की मछलियां शामिल हैं। इन सभी मछलियों की अपनी अपनी खासियतें हैं।
बड़ी के साथ दिख रही हैं छोटी मछलियां भी
नाविक गोरखनाथ बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में कभी कभी बरसात के दिनों में रोहू, कतला दिख भी जाती थीं लेकिन झींगा, भाकुरी, सिंघा तो देखे जमाना हो गया था। हर मछली की अपनी विशेषता है। उन्होंने बताया कि हिल्सा की खासियत है कि जिस ओर नदी की धारा होती है, वो उसके उल्टे तैरती है। वहीं झींगा हमेशा साफ पानी में ही दिखेगी। खास बात ये है कि बड़ी मछलियों के साथ छोटी मछलियां भी दिख रही हैं।