Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 16 Dec, 2021 06:29 PM
कहते है की जहां चाह होती है वहां राह होती है, इन शब्दों को कानपुर के कक्षा नौवीं के छात्र मयंक ने सच कर दिखाया है। उसने अपने अंधे दादा जी की दर्द भरी पीड़ा को महसूस कर ऐसी
कानपुरः कहते है की जहां चाह होती है वहां राह होती है, इन शब्दों को कानपुर के कक्षा नौवीं के छात्र मयंक ने सच कर दिखाया है। उसने अपने अंधे दादा जी की दर्द भरी पीड़ा को महसूस कर ऐसी डिवाइस बनाई हैं। जोकि उनकी आँखों की रोशनी तो वापस नहीं ला सकती, लेकिन उनके चलने-फिरने में काफी मददगार साबित हो रही है। बीएनएसडी शिक्षा निकेतन में पढ़ने वाले नौवीं के छात्र मयंक के इस आविष्कार से उन दृस्तिहीन दिव्यांगों को लाभ मिल सकेगा,जो सड़क पर चलते समय अक्सर किसी ना किसी से टकरा जाते हैं। मंयक ने ये डिवाइस अपने साथी यश शुक्ला के साथ मिलकर बनाई हैं।
मयंक ने अपने इस आविष्कार को सिर पर पहनने वाली कैप में फिट किया है। इस कैप को लगाने के बाद चलते समय अगर कोई व्यक्ति गाड़ी या फिर दीवार से टकराता है, तो कैप में लगे सेंसर तुरंत एक्टिवेट हो जाते हैं और उसी समय उसमें लगे बजर से बीप की आवाज निकलने लगती है। जिससे कैप लगाने वाले को पता चल जाता है कि उसके सामने कोई है। इस डिवाइस को "ब्लाइंड कैप" का नाम दिया है। छात्र मयंक शुक्ला ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक की मदद से ब्लाइंड कैप को तैयार कर किया गया है।
मयंक और यश ने बताया कि कैप तैयार करने का आइडिया अटल इनोवेशन मिशन के विशेषज्ञों ने दिया था। छात्रों का मार्गदर्शन करने वाले अटल टिंकरिंग लैब के इंचार्ज अवनीश मेहरोत्रा ने बताया कि इस डिवाइस में अल्ट्रासोनिक सेंसर और एड्रिनो यूनो की प्रोग्रामिंग की गई है और अल्ट्रासोनिक सेंसर से इनपुट बजर को भेजा जाता है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से यह आउटपुट के रूप में बजर से उस व्यक्ति के पास पहुंच जाता है ,जो कैप का उपयोग कर रहा होता है। कैप का प्रोटोटाइप तैयार होने के बाद लैब में 20 से अधिक व्यक्तियों की आंखों पर पट्टी बांधकर उन्हें यह कैप पहनाई गई। जिसके बाद ये डिवाइस परीक्षण में पूरी तरह सफल रहा।