हाईकोर्ट की टिप्पणी- वैवाहिक संबंधों में सुधार की गुजाइंश न होना तलाक का आधार नहीं

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 25 Aug, 2019 12:14 PM

high court s comment on divorce  lack of improvement in marital relations

इलाहाबाद हाईकोर्ट में तलाक को लेकर कहा है कि वैवाहिक संबंधों में सुधार की गुंजाइश न होना मात्र ही तलाक का आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने कहा है कि अदालतें स्वविवेक से परिस्थितियों का परीक्षण करने के उपरांत वैवाहिक....

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट में तलाक को लेकर कहा है कि वैवाहिक संबंधों में सुधार की गुंजाइश न होना मात्र ही तलाक का आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने कहा है कि अदालतें स्वविवेक से परिस्थितियों का परीक्षण करने के उपरांत वैवाहिक संबंध मृत पाने की स्थिति में तलाक का आदेश पारित करती हैं। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 में इस आधार को शामिल नहीं किया है।

मेरठ की डॉ. सरिता की प्रथम अपील पर सुनवाई
वहीं मेरठ की डॉ. सरिता की प्रथम अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि वैवाहिक संबंध में सुधार की कोई गुंजाइश न बचे होने के आधार पर तलाक दिए जाने का नियम एक्ट में शामिल नहीं किया गया है।

कोर्ट ने डॉ. सरिता की अपील की स्वीकार
कोर्ट ने डॉ. सरिता की अपील स्वीकार करते हुए उसके विरुद्ध पारित तलाक की मंजूरी को रद्द कर दिया है। सरिता के पति डॉ. विकास कनौजिया ने मेरठ प्रधान पारिवारिक न्यायाधीश की अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की थी। पारिवरिक न्यायाधीश ने क्रूरता और वैवाहिक संबंध में सुधार की गुंजाइश बचे न होने को आधार बनाते हुए तलाक मंजूर कर लिया था।

वैवाहिक संबंधों में सुधार की गुंजाइश ना बचे तो तलाक को मंजूरी नहीं
हाईकोर्ट ने इसे रद्द करते हुए कहा कि मानसिक क्रूरता को सही तरीके से साबित नहीं किया गया और सुधार की गुंजाइश बचे न होने का आधार पति द्वारा लिया गया है, जबकि उसने स्वयं अपनी पत्नी के साथ रहने से मना कर दिया है। ऐसी स्थिति में इस आधार पर तलाक को मंजूरी नहीं दी जा सकती है।










 

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