आजादी के 73 साल बाद भी कुम्हारों की जिंदगी से नहीं मिट सका अंधियारा

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 25 Oct, 2019 05:10 PM

even after 73 years of independence the darkness of the potters

प्रकाश पर्व दीपावली पर मिट्टी के दिए बनाकर दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हार बिरादरी के लोगो की जिंदगी मे आजादी के 73 साल बाद भी अंधियारा छाया हुआ है। आधुनिकता के दौर में कुल्हड़ के बजाय प्लास्टिक के गिलास, मिट्टी के कलश की जगह स्टील व पीतल के...

बलरामपुरः प्रकाश पर्व दीपावली पर मिट्टी के दिए बनाकर दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हार बिरादरी के लोगो की जिंदगी मे आजादी के 73 साल बाद भी अंधियारा छाया हुआ है। आधुनिकता के दौर में कुल्हड़ के बजाय प्लास्टिक के गिलास, मिट्टी के कलश की जगह स्टील व पीतल के कलश के चलन ने कुम्हारों के पुश्तैनी धंधे पर संकट पैदा कर दिया हैं।
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हिन्दू समाज में कुम्हार जाति और मुस्लिम मे कसघड बिरादरी के लोगो द्वारा मिट्टी को गूंध कर चाक के सहारे दिए, खिलौने, बर्तन बनाने की अछ्वुत कला उनके घूमते चाक व हाथ से बनकर निकलती है। इन्हीं कसघड और कुम्हार बिरादरी के लोगों द्वारा बनाये गये मिट्टी के दिए जलाकर दीपावली में भले ही लोग अपने घरों को जगमगाते हैं,लेकिन आजादी के 73 साल बीत जाने के बाद भी कुम्हार जाति के लोगों को विकास की एक भी किरण मयस्सर नहीं हो सका है। कसघड बिरादरी के लोग आज भी झुग्गी झोपड़यिों में जीवन बसर करने को मजबूर हैं।

झुग्गी झोपड़यिों में गुजरबसर करने वाले इन लोगों को एक अदद भी शहरी निर्बल आवास, प्रधानमंत्री आवास, तक नसीब नहीं हो पाया है। पुश्तैनी पेशा छोड़े राम नरायन प्रजापति, राम नरेश प्रजापति, राजाराम प्रजापति ने आप बीती बताते हुए कहा कि अब इस धंधे में कुछ बचा नहीं है,इस कारण लोगों ने मजबूरी में काम छोड़ दिया है हालांकि मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचना उनका पुश्तैनी धंधा है।

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