अखिलेश ने सरकार की ली चुटकी,  कहा- 1,93,000 शिक्षक भर्तियों के जुमलाई विज्ञापन ...भाजपा की हार ...

Edited By Ramkesh,Updated: 22 May, 2025 01:48 PM

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उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगभग 2 लाख पदों पर भर्ती का ट्वीट डिलीट करने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव योगी सरकार पर जुबानी हमला बोला है। उन्होंने इसे लेकर दो ट्वीट किए हैं। अखिलेश ने अपने पहले ट्वीट में कहा कि उप्र में जिस...

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगभग 2 लाख पदों पर भर्ती का ट्वीट डिलीट करने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव योगी सरकार पर जुबानी हमला बोला है। उन्होंने इसे लेकर दो ट्वीट किए हैं। अखिलेश ने अपने पहले ट्वीट में कहा कि उप्र में जिस तरह से नौकरियों के बारे में की गयी पोस्ट डिलीट कर दी गयी है, वैसे ही नौकरियां भी उप्र से डिलीट कर दी गयीं हैं। लगभग 2 लाख पदों की भर्ती की पोस्ट लगभग 2 दिन के लिए तो पोस्ट करके रखते। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि नौकरी भाजपा के एजेंडे में है ही नहीं। उन्होंने इसे लेकर आज दूसरा ट्वीट किया है जिसमें एक लम्बा चौड़ा पोस्ट किया है। अखिलेश ने  2027 के चुनाव में ‘भाजपा की हार का राजनीतिक गणित’ समझाते हुए कहा कि  मान लिया जाए कि 1 पद के लिए कम-से-कम 75 अभ्यर्थी होते, तो यह संख्या होती = 1,44,75,000 और एक अभ्यर्थी के साथ यदि केवल उनके अभिभावक जोड़ लिए जाएं तो कुल मिलाकर 3 लोग इससे प्रभावित होंगे अर्थात ये संख्या बैठेगी = 4,34,25,000

 403 विधानसभा सीटों का अखिलेश ने समझाया गणित
अखिलेश ने कहा कि ये सभी व्यस्क होंगे अतः इन्हें 4,34,25,000 मतदाता मानकर अगर उप्र की 403 विधानसभा सीटों से विभाजित कर दें तो ये आँकड़ा लगभग 1,08,000 वोट प्रति सीट का आयेगा और अगर इनका आधा भी भाजपा का वोटर मान लें (चूँकि भाजपा 50% वोटरों की जुमलाई बात करती आई है) तो लगभग 1,08,000 का आधा मतलब हर सीट पर  54,000 मतों का नुक़सान भाजपा को होना तय है। इस परिस्थिति में भाजपा 2027 के विधानसभा चुनावों में दहाई सीटों पर ही सिमट जाएगी।

2027 विधान सभा चुनाव में भाजपा का राजनीतिक गुणा-गणित टूट कर बिखर जाएगा
पुलिस भर्ती के मामले में ‘भर्तियों का ये गणित’ भाजपा को उप्र में लगभग आधी सीटों पर हारने में सफल भी रहा है, अत: ऐसे आँकड़ों को अब सब गंभीरता से लेने लगे हैं। अब ये मानसिक दबाव का नहीं वरन सियासी सच्चाई का आँकड़ा बन चुका है। जैसे ही ये आँकड़ा प्रकाशित होगा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भाजपाई प्रत्याशियों के बीच जाएगा वैसे ही उनका राजनीतिक गुणा-गणित टूट कर बिखर जाएगा और विधायक बनने का उनका सपना भी। इससे भाजपा में एक तरह से भगदड़ मच जाएगी। ऐसे में भाजपा को मतदाता ही नहीं बल्कि प्रत्याशियों के भी लाले पड़ जाएँगे। वैसे भी कुछ निम्नांकित उल्लेखनीय कारणों से भाजपा सरकार के विरोध में, उप्र की जनता पूरी तरह आक्रोशित है और भाजपा को 2027 के चुनाव में बुरी तरह से हराने और हटाने के लिए पूरी तरह कमर कस के तैयार है।

 युवा बेरोजगारी से परेशान
उन्होंने कहा कि युवाओं की बेरोजगारी से परेशान है। परिवारवालों के लिए खानपान, दवाई, पढ़ाई, पेट्रोल-डीजल और हर चीज़ की महंगाई है।  महिलाओं का अपमान और असुरक्षा के सरकारी दावे सब फेल हो चुके है।  प्रदेश में हर काम में भ्रष्टाचार है। पीडीए का उत्पीड़न और उन पर अत्याचार हो रहा है। शिक्षक, शिक्षामित्र, आशा, आंगनबाड़ी, सहायिका, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की उपेक्षा और अवहेलना की गई है।  जनता की बचत पर मिलनेवाले ब्याज का कम होना और उस पर भी टैक्स वसूलना कलाकारों की अभिव्यक्ति पर डर की तलवार। स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों, जल व विद्युत आपूर्ति की दुर्दशा और लगातार बढ़ते बिल…

 भाजपा ने सपा सरकार के बने कामों के उद्घाटन का उद्घाटन मात्र किया
इन जैसे न जाने कितने मुद्दे हैं, जो भाजपा विरुद्ध जनता  में आक्रोश का उबाल ला चुके हैं। उप्र में लोकसभा की पराजय के बाद भाजपा का सारा सियासी समीकरण और साम्प्रदायिक राजनीति का फ़ार्मूला पहली ही फ़ेल हो चुका है, विकास के नाम पर इन्होंने सपा सरकार के बने कामों के उद्घाटन का उद्घाटन मात्र किया है। ऐसे में भाजपा के भावी प्रत्याशियों के बीच ये संकट है कि वो जनता के बीच क्या मुँह लेकर जाएं। इसीलिए उप्र में भाजपा 2027 के चुनाव में अपनी हार मान चुकी है और जाने से पहले हर ठेके और काम में बस पैसा बटोरने में लगी है।  इसीलिए उप्र ‘ऐतिहासिक महाभ्रष्टाचार’ के दौर से गुजर रहा है।

90% पीड़ित पीडीए अपनी सरकार’ बनाने के लिए कटिबद्ध
भाजपा की सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता पर आधारित समाज को लड़ानेवाली बेहद कमज़ोर हो चुकी दरारवादी-विभाजनवादी नकारात्मक राजनीति के मुक़ाबले ‘सामाजिक न्याय के राज’ की स्थापना का महालक्ष्य लेकर चलनेवाली समता-समानतावादी, सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक पीडीए राजनीति का युग आ चुका है। 90% पीड़ित जनता जाग चुकी है और ‘अपनी पीडीए सरकार’ बनाने के लिए कटिबद्ध भी है और प्रतिबद्ध भी। 

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