Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 05 Feb, 2021 07:58 PM
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने शुक्रवार को कहा कि उत्तर प्रदेश में बलरामपुर जिले के एक पुलिस थाने में हिरासत में बलात्कार के मामले पर उसने निरंतर
नयी दिल्ली/लखनऊः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने शुक्रवार को कहा कि उत्तर प्रदेश में बलरामपुर जिले के एक पुलिस थाने में हिरासत में बलात्कार के मामले पर उसने निरंतर नजर रखी, जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने दोषी पुलिसकमियों के खिलाफ कार्रवाई की। आयोग ने एक बयान में यह भी कहा कि उसकी कोशिशों के चलते मामले में तीन पीड़ितों को राहत मिल सकी।
बयान में कहा गया है, ‘‘एनएचआरसी के निरंतर नजर रखने के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश सरकार ने अवैध हिरासत में रखने, प्रताड़ित करने, झूठे मामले में फंसाने, हिरासत में बलात्कार करने को लेकर एक उप निरीक्षक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) तथा 506 के आरोपपत्र दाखिल किया।'' यह घटना जिले के ललिया पुलिस थाने की है। आयोग के बयान में कहा गया है, ‘‘इसके अलावा, इस विषय में उपयुक्त जांच नहीं किये जाने को लेकर तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक और पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी), बलरामपुर के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गई।''
एनएचआरसी ने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को यह भी देखने को कहा कि क्या विभागीय कार्रवाई मामले में कानून के मुताबिक शीघ्रता से शेष दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ पूरी हो गई है, जिनमें पर्यवेक्षी अधिकारी भी शामिल थे। आयोग ने अपनी जांच में पाया था कि जिले के एक युवक और एक लड़की घर से भाग गये थे तथा 2014 में उन्होंने मुंबई में शादी कर ली थी। लड़की के पिता ने इस विषय में पुलिस के पास अपहरण की एक शिकायत दायर की थी, जिसके बाद नव विवाहित जोड़े को जिले के मथुरा पुलिस चौकी बुलाया गया था। आयोग ने कहा कि हालांकि इस विषय में उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बजाय उन दोनों को पुलिस चौकी में 12-13 अगस्त को अलग-अलग कोठरी में हिरासत में रखा गया।
एनएचआरसी ने कहा, ‘‘उप निरीक्षक ने लड़की का यौन उत्पीड़न किया। जब लड़की ने इस बारे में शिकायत की तो इस विषय में कोई फौरी कानूनी कार्रवाई नहीं की गई।'' आयोग ने कहा , ‘‘पुलिस ने युवक पर बलात्कार का आरोप दर्ज किया लड़की के ससुर को भी झूठे मामले में फंसा दिया। लड़की को उसके समर्थकों पर एक अन्य प्राथमिकी दर्ज करने की धमकी देकर उसे अपने आरोप वापस लेने के लिए मजबूर किया गया।'' आयोग ने यह भी पाया कि उसके नोटिस जारी करने पर बलरामपुर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक घटनाओं को सिलसिले वार तरीके से पेश करने में नाकाम रहे थे। आयोग की सिफारिश पर लड़की, उसके पति और लड़की के ससुर को क्रमश:पांच लाख, तीन लाख, डेढ़ लाख रुपये की अंतरिम राहत दी गई।