CBCID की जांच में फंसे थानेदार, प्रमोशन व नौकरी पर मंडराया खतरा

Edited By Umakant yadav,Updated: 25 Nov, 2020 02:04 PM

cbcid investigator trapped in sho promotion and job threat

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में सीबीसीआइडी की जांच में तत्कालीन थानाध्यक्ष जलालपुर वर्तमान में फतेहपुर में थानाध्यक्ष उमेश प्रताप सिंह फंस गए हैं। इनके प्रमोशन व नौकरी पर भी खतरा मंडरा रहा है।

जौनपुर: उत्तर प्रदेश के जौनपुर में सीबीसीआइडी की जांच में तत्कालीन थानाध्यक्ष जलालपुर वर्तमान में फतेहपुर में थानाध्यक्ष उमेश प्रताप सिंह फंस गए हैं। इनके प्रमोशन व नौकरी पर भी खतरा मंडरा रहा है। सोमवार को अदालत में समर्पण व जमानत की तैयारी से आए थे लेकिन जेल जाने की आशंका के कारण समर्पण नहीं किया। सीजेएम कोर्ट में मंगलवार को अधिवक्ता के माध्यम से प्रार्थना पत्र दिया कि सीबीसीआइडी द्वारा की गई विवेचना की केस डायरी तथा स्पष्ट आख्या तलब कर ली जाए जिससे वह जमानत की कार्रवाई करा सकें।

मामला जलालपुर थाना क्षेत्र में वर्ष 1999 में हुई हत्या का है जिसमें पूर्व विधायक समेत तीन को सेशन कोर्ट से सजा भी हो चुकी है। थानाध्यक्ष व अन्य पुलिस कर्मियों पर आरोपियों को बचाने के लिए विवेचना में धारा हल्की करने एवं षडयंत्र का प्रथम द्दष्टया अपराध सीबीसीआइडी की विवेचना में पाया गया है। जून 1999 में वादी छेदीलाल का भाई मोहनलाल अपने ससुराल मझगवा कला पत्नी आशा को लेने गया था। आरोप है कि पूर्व विधायक जगन्नाथ चौधरी ने पत्नी आशा व उसकी मां बबना से सांठगांठ करके मोहनलाल की हत्या कर दी। कोर्ट ने दो सितंबर 2014 को तीनों आरोपितों को गैर इरादतन हत्या का दोषी पाते हुए सात वर्ष की सजा सुनाई।

इसी मामले में विवेचना के दौरान वादी ने प्रार्थना पत्र दिया था कि विवेचक थानाध्यक्ष जलालपुर उमेश प्रताप सिंह ने आरोपितों को बचाने के लिए धारा 302 को 306 आइपीसी में परिवर्तित कर दिया है। शासन के निर्देश पर विवेचना सीबीसीआइडी को सौंप दी गई। सीबीसीआइडी ने विवेचना में पाया कि थानाध्यक्ष एवं उप निरीक्षक व अन्य पुलिसकर्मी आरोपितों को बचाने के लिए गलत तथ्यों को अंकित कर साक्ष्यों को छिपाया है। 

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