Edited By Deepika Rajput,Updated: 10 Aug, 2019 12:29 PM
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में दायर अपीलों पर रोजाना सुनवाई करने के निर्णय पर मुस्लिम पक्षकारों की आपत्ति दरकिनार करते हुए स्पष्ट किया कि इस मामले की दैनिक आधार पर सुनवाई जारी रहेगी।
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में दायर अपीलों पर रोजाना सुनवाई करने के निर्णय पर मुस्लिम पक्षकारों की आपत्ति दरकिनार करते हुए स्पष्ट किया कि इस मामले की दैनिक आधार पर सुनवाई जारी रहेगी।
शीर्ष अदालत ने इस प्रकरण में एक मूल पक्षकार एम. सिद्दीक और अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन की आपत्ति दरकिनार कर दी। राजीव धवन ने इस पर आपत्ति उठाते हुए कहा था कि सप्ताह में 5 दिन कार्यवाही में हिस्सा लेना उनके लिए संभव नहीं होगा। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में 5वें दिन की सुनवाई के अंत में कहा कि हम पहले दिए गए आदेश के अनुरूप रोजाना सुनवाई करेंगे। हालांकि, पीठ ने धवन को यह आश्वासन दिया कि यदि उन्हें इस मामले में तैयारी के लिए समय चाहिए तो सप्ताह के मध्य में विराम देने पर विचार किया जाएगा। इसके बाद, पीठ ने कहा कि इन अपीलों पर अब मंगलवार को सुनवाई होगी। सोमवार को ईद के अवसर पर कोर्ट में अवकाश है।
इससे पहले, मामले में सभी 5 कार्य दिवसों को सुनवाई करने के शीर्ष अदालत के निर्णय पर धवन ने आपत्ति दर्ज कराई थी और कहा था कि यदि इस तरह की ‘जल्दबाजी' की गई तो वह इसमें सहयोग नहीं कर सकेंगे। शीर्ष अदालत ने नियमित सुनवाई की परंपरा से हटकर अयोध्या विवाद में शुक्रवार को भी सुनवाई करने का निर्णय किया था। शुक्रवार और सोमवार के दिन नए मामलों और लंबित मामलों में दाखिल होने वाले आवेदनों आदि पर विचार के लिए होते हैं। ‘रामलला विराजमान' की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरन जैसे ही आगे बहस शुरू करने के लिए खड़े हुए, एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से धवन ने इसमें हस्तक्षेप करते हुए कहा कि यदि सप्ताह के सभी दिन इसकी सुनवाई की जाएगी तो कोर्ट की मदद करना संभव नहीं होगा।
धवन का कहना था कि पहली अपील में दस्तावेजी साक्ष्यों का अध्ययन करना होगा। अनेक दस्तावेज उर्दू और संस्कृत में हैं जिनका अनुवाद करना होगा। उन्होंने कहा कि संभवत: न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश ने हाईकोर्ट का फैसला नहीं पढ़ा होगा। धवन ने कहा कि अगर न्यायालय ने सभी 5 दिन इस मामले की सुनवाई करने का निर्णय लिया है तो वह इस मामले से अलग हो सकते हैं। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हमने आपके कथन का संज्ञान लिया है। हम शीघ्र ही आपको बताएंगे। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को परासरन से सवाल किया था कि जब देवता स्वयं इस मामले में पक्षकार हैं तो फिर ‘जन्मस्थान' इस मामले में वादकार के रूप में कानूनी व्यक्ति के तौर पर कैसे दावा कर सकता है।
उल्लेखनीय है कि, संविधान पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था।