आश्रय गृह में रखी गयी 16 साल की मुस्लिम किशोरी को पेश करने का उप्र सरकार को निर्देश

Edited By Ajay kumar,Updated: 24 Sep, 2019 09:34 AM

up government to introduce 16 year old muslim teenager kept in a shelter home

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को 16 साल की उस मुस्लिम किशोरी को पेश करने निर्देश दिया, जिसकी शादी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अमान्य घोषित कर दी थी और वह लखनऊ स्थित बाल गृह में है।

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को 16 साल की उस मुस्लिम किशोरी को पेश करने निर्देश दिया, जिसकी शादी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अमान्य घोषित कर दी थी और वह लखनऊ स्थित बाल गृह में है। साथ ही न्यायालय ने इस लड़की की अपील पर राज्य सरकार को अपने वकील को आवश्यक निर्देश नहीं देने पर भी आड़े हाथ लिया। शीर्ष अदालत ने किशोरी के पिता और पति को भी एक अक्टूबर को उपस्थित रहने का निर्देश देने के साथ ही राज्य सरकार से कहा कि वह लड़की की ठीक से देखभाल करें। शीर्ष अदालत में दायर अपील में इस लड़की का तर्क है कि उसका शादी अमान्य घोषित करते समय उच्च न्यायालय ने मुस्लिम कानून पर विचार ही नहीं किया।

न्यायमूर्ति एन वी रमणा, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले में अपने वकील को जवाब दाखिल करने के बारे में उचित निर्देश नहीं देने पर उप्र सरकार को आड़े हाथ लिया और सवाल किया कि शुरू में किशोरी को ‘नारी निकेतन ' में क्या रखा गया। राज्य के गृह सचिव के पेश होने के बाद पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या उप्र के पास अपना बचाव करने के लिये वकील नहीं हैं? इस मामले में पेश हुये वकील को कोई निदेश ही नहीं दिया गया। क्या आप इस तरह का आचरण करते हैं?'' 

पीठ ने कहा, ‘‘यह एक गंभीर मामला है जिसमें एक किशोरी को किशोर गृह में रखा गया है और आप हमारे साथ सहयोग नहीं करते। यह किशोरी नारी निकेतन में है। आप उसे नारी निकेतन में कैसे रख सकते हैं?'' उप्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा कि इस किशोरी को अब लखनऊ स्थित बाल गृह में स्थानांतरित कर दिया गया है। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा हमारे हस्तक्षेप की वजह से हुआ है।'' 

इस किशोरी के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी बेटी का एक व्यक्ति ने अपहरण कर लिया है। इसके बाद किशोरी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया जिसमे उसने कहा कि उसने अपनी मर्जी से इस व्यक्ति से शादी कर ली है और वह उसके ही साथ रहना चाहती है। इस लड़की की ओर से अधिवक्ता दुष्यंत पराशर ने कहा कि वह 16 साल की है और उसने अपनी मर्जी से शादी की थी। पराशर ने मुस्लिम लॉ का हवाला देते हुये कि एक महिला के रजस्वला आयु, जो 15 साल है, की होने पर वह अपनी जिंदगी के बारे में स्वतंत्र रूप से फैसला ले सकती है और अपनी पसंद के किसी भी वयक्ति से विवाह करने में सक्षम है। 

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम इस लड़की को पेश करने का आदेश देंगे। उसे आने दीजिये।'' शीर्ष अदालत ने कहा कि वह डाक्टर, हो सके तो मनोचिकित्सक' को उससे बातचीत करने के लिये कहेगी। पीठ ने कहा, ‘‘हम उसके पति को भी पेश होने के लिये कहेंगे।'' भाटी ने पीठ से कहा कि वह मामले की सुनवाई की अगली तारीख एक अक्टूबर को किशोरी के पिता को भी पेश करेंगी। सुनवाई के अंतिम क्षणों में पीठ ने उप्र सरकार के गृह सचिव को यह सुनिश्चित करने के लिये कहा कि न्यायालय में किसी भी मामले में पेश होने वाले उसके वकीलों को उचित निर्देश दिये जायें।

पीठ ने गृह सचिव को इस संबंध में लिखित में एक आश्वासन देने के लिये कहा और अपने आदेश में इस तथ्य का जिक्र किया कि राज्य सरकार के उपेक्षित रवैये के कारण ही उन्हें व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश देने पर उसे बाध्य होना पड़ा। गृह सचिव में इस घटना पर खेद व्यक्त किया और पीठ को आश्वासन दिया कि वकील को सही तरीके से निर्देश दिये जायेंगे और राज्य सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा दाखिल किया जायेगा। न्यायालय ने अपनी रजिस्ट्री से कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के एक चिकित्सक, बेहतर हो कि महिला मनोचिकित्सक, को भी सुनवाई की अगली तारीख पर पेश होने का अनुरोध किया जाये। शीर्ष अदालत ने पिछले सप्ताह उप्र के गृह सचिव को तलब किया था क्योंकि किशोरी की अपील पर राज्य सरकार जवाब दाखिल करने में विफल हो गयी थी।

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