Edited By Pooja Gill,Updated: 06 Jul, 2025 03:32 PM

प्रयागराज: पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने रविवार को कहा कि मोदी-योगी या किसी भी राज्य की भाजपा सरकार ने मुसलमानों के विकास में कमी नहीं की, भले पार्टी को वोट देने में कंजूसी...
प्रयागराज: पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने रविवार को कहा कि मोदी-योगी या किसी भी राज्य की भाजपा सरकार ने मुसलमानों के विकास में कमी नहीं की, भले पार्टी को वोट देने में कंजूसी की गई हो। उन्होंने कहा, "अब हमें (मुस्लिमों) भाजपा से राजनीतिक दूरी को खत्म करना होगा। भाजपा मुल्क की हकीकत है। इसे नजरअंदाज करना मुल्क और मुसलमानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। भाजपा के प्रति पैदा किए गए भय-भ्रम के गटर पर भरोसे का शटर लगाना होगा।"
'जुगाड़ का जमघट चारों खाने चित होने वाला है'
मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि आजादी के बाद पहली गैर-कांग्रेस सरकार है जो एक परिवार के सहारे और कांग्रेस के रिमोट के बगैर सुशासन, सफलता के कीर्तिमान स्थापित करती हुई काम कर रही है। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव पर उन्होंने कहा कि जनगणना से पहले मतगणना पर सवाल और बवाल करने वाले समझ चुके हैं कि इस बार फिर उनका जुगाड़ का जमघट चारों खाने चित होने वाला है। वक्फ कानून को लेकर नकवी ने कहा कि वक्फ और अन्य सुधारों पर सांप्रदायिक प्रहार इस बात का प्रमाण है कि विपक्ष संवैधानिक कानून पर भ्रम के जरिए लूट पर छूट का लीगल लाइसेंस चाहता है। उन्होंने कहा कि वक्फ कानून, धार्मिक आस्था के संवैधानिक संरक्षण, प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की गारंटी है।
'समाजवाद को संविधान का हिस्सा बनाने के पीछे सियासी स्वार्थ'
मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि विभाजन के बाद जहां पाकिस्तान ने इस्लामी झंडा फहराया, वहीं भारत ने सर्वधर्म समभाव का रास्ता चुना, यह भारत के बहुसंख्यकों के संस्कार, संस्कृति व सोच का प्रमाण है। नकवी ने संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द के उल्लेख को लेकर छिड़ी बहस पर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “संविधान के मूल ढांचे में न तो धर्मनिरपेक्षता और न ही समाजवाद शब्द थे। इसके बावजूद हिंदुस्तान हमेशा पंथनिरपेक्ष और समाजवादी रहा है। 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ कर धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को संविधान का हिस्सा बनाने के पीछे सियासी स्वार्थ था। धर्मनिरपेक्षता के राजनीतिक दुरुपयोग पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए।”