Edited By Pooja Gill,Updated: 01 Jul, 2024 01:01 PM
![this law is a preparation to tighten the noose](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2024_7image_13_01_103591323unnamed-ll.jpg)
New Criminal Laws: देशभर में तीन नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इन कानूनों को देशवासियों पर शिकंजा कसने की तैयारी बताया है...
New Criminal Laws: देशभर में तीन नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इन कानूनों को देशवासियों पर शिकंजा कसने की तैयारी बताया है। डिंपल यादव का कहना है कि यह कानून गलत तरीके से संसद में पास किए गए है। इन कानूनों पर कोई भी चर्चा नहीं की गई है। यह ऐसे कानून है कि अगर कोई विदेशों में भी अपने अधिकारों को लेकर विरोध करता है तो उन पर भी ये कानून लागू होंगे। कहीं न कहीं यह कानून पूरे देशवासियों पर शिकंजा कसने की तैयारी है।
आज लागू हुए कानून
बता दें कि आज उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए है। इनमें भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 शामिल हैं। इन नए कानूनों के लागू होने के साथ आज ब्रिटिश राज के औपनिवेशिक कानूनों का अंत हो गया। इन नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों का खास ध्यान रखा गया है। उनके खिलाफ होने वाले अपराधों के मामलों में सख्त सजा देने का प्रावधान है। साथ ही इसमें पेपर लीक कराने वालों को भी सख्त सजा देने का प्रावधान है। आपराधिक प्रक्रिया तय करने वाले तीन नए कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए एफआईआर से लेकर फैसले तक को समय सीमा में बांधा गया है।
तय समय सीमा में दर्ज होगी FIR
आपराधिक मुकदमे की शुरुआत FIR से होती है। नये कानून में तय समय सीमा में एफआईआर दर्ज करना और उसे अदालत तक पहुंचाना सुनिश्चित किया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में व्यवस्था है कि शिकायत मिलने पर तीन दिन के अंदर एफआईआर दर्ज करनी होगी। तीन से सात साल की सजा के केस में 14 दिन में प्रारंभिक जांच पूरी करके एफआईआर दर्ज की जाएगी। 24 घंटे में तलाशी रिपोर्ट के बाद उसे न्यायालय के सामने रख दिया जाएगा। अब न्यायालय में लंबित आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए पीड़ित को कोर्ट में अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलेगा। न्यायालय पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना मुकदमा वापस लेने की सहमति नहीं देगा।