शिवरात्रीः हर साल चावल दाने के बराबर बढ़ते है शल्लेश्वर महादेव, चंदेलकालीन शिवमंदिर में समाए हैं कई रहस्य

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 11 Mar, 2021 10:57 AM

shivratri shalleshwar mahadev grows as a grain of rice every year

उत्तर प्रदेश हमीरपुर जिले से 60 किलोमीटर दूर सरीला कस्बे में शल्लेश्वर मंदिर लोगों के लिए आस्था व श्रद्धा का केंद्र है। चंदेलकालीन इस शिव मंदिर के गर्त में तमाम ऐतिहासिक रहस्य समाए...

हमीरपुर:  उत्तर प्रदेश हमीरपुर जिले से 60 किलोमीटर दूर सरीला कस्बे में शल्लेश्वर मंदिर लोगों के लिए आस्था व श्रद्धा का केंद्र है। चंदेलकालीन इस शिव मंदिर के गर्त में तमाम ऐतिहासिक रहस्य समाए हुए हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर लगा शिलालेख आज तक कोई पढ़ नहीं सका है। शिव मंदिर का रख-रखाव समिति करती है। श्रावण माह में यहां पूजा अर्चन करने वालों का तांता लगा रहता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवलिंग पर जल चढ़ाने व दर्शन को ब्रह्म मूर्त में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है।

आज तक लोग नहीं पढ़ सके शिलालेख
बता दें कि यह कस्बा प्राचीन काल में राजा शल्य की राजधानी रहा। कस्बे के मध्य ऊंचाई वाले इलाके में बना प्राचीन शिवालय शल्लेश्वर मंदिर का निर्माण व इतिहास आज तक उजागर नहीं हो सका है। चंदेलकालीन मंदिर व मठों की तर्ज पर पत्थर के शिलापटों से बने इस मंदिर को भी चंदेलकालीन माना जाता है। मंदिर के गर्भ में भारी भरकम शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में राजा शल्य की राजधानी रहा है। ऊंचाई वाले व मध्य क्षेत्र में यह मंदिर होने से लोग इसे राजा शल्य के महल का मंदिर भी बताते हैं। ​मंदिर के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख लगा है, लेकिन अथक प्रयासों के बावजूद इसे पढ़ा नहीं जा सका है।

प्रतिवर्ष चावल जितना बढ़ते हैं महादेव
लोगों का यह भी दावा है कि मंदिर का शिवलिंग हर वर्ष एक चावल जितना लंबा व मोटा हो रहा है। इसकी प्रमाणिकता शिवरात्रि पर की जाती है। शिवरात्रि के मौके पर होने वाले शिव विवाह में शिवलिंग पर चढ़ने वाला जनेऊ हर वर्ष छोटा पड़ जाता है। मंदिर का रख-रखाव करने वाली श्री शल्लेश्वर मंदिर समिति ने इस मंदिर का नए लुक में भव्य निर्माण करा दिया है और अनवरत निर्माण कार्य जारी रहता है। शिवरात्रि के समय यहां शिव बारात का आयोजन करीब 48 वर्षो से होता चला आ रहा है। इसका आयोजन हर वर्ष बढ़ रहा है। साल भर यहां पूजा अर्चन व मनौती मांगने वालों का तांता लगा रहता है।

कुंए में नहाने से ठीक हो जाता है चर्म रोग
मंदिर से करीब एक किमी दूर एक प्राचीन कुआं है। जिसे शल्लऊ कुआं कहा जाता है। शल्लेश्वर मंदिर से इसका जल मार्ग जुड़ा हुआ है। लेकिन मंदिर में कहां छेद है, यह आज तक कोई ढूंढ नहीं पाया। मंदिर के शिवलिंग पर होने वाले दूध व जलाभिषेक इस गुप्त रास्ते से कुंए में आता है। लोगों की मान्यता है कि इस कुंए में नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।

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