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गोरखपुर दंगा मामले में CM योगी के खिलाफ बार-बार याचिका की दायर, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याची पर लगाया 1 लाख का जुर्माना

Edited By Anil Kapoor,Updated: 23 Feb, 2023 09:15 AM

repeated petition filed against cm yogi in gorakhpur riot case

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने 2007 के गोरखपुर दंगा (Gorakhpur riot) मामले में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ बार-बार याचिका दायर करने के मामले में याची पर एक लाख रुपए का...

प्रयागराज(अश्वनी सिंह): इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने 2007 के गोरखपुर दंगा (Gorakhpur riot) मामले में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ बार-बार याचिका दायर करने के मामले में याची पर एक लाख रुपए का जुर्माना (Fine) लगाया है। दरअसल 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर (Gorakhpur) में मुहर्रम (Muharram) के जुलूस के दौरान दो समूहों के बीच हुई झड़प में एक हिंदू युवक की मौत (Death) हो गई थी। एक स्थानीय पत्रकार, परवाज़ ने 26 सितंबर, 2008 को एक मामला दर्ज किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि तत्कालीन स्थानीय भाजपा सांसद आदित्यनाथ ने युवक (Youth) की मौत का बदला लेने के लिए भाषण दिया था और उसके पास घटना के वीडियो (Video) थे। इसके बाद, भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने 3 मई, 2017 को मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया।

जानकारी के मुताबिक, आवेदक ने उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी, जिसने 22 फरवरी, 2018 को उसकी याचिका खारिज कर दी। बाद में, उन्होंने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसने भी इसे खारिज कर दिया। आवेदकों ने 11 अक्टूबर, 2022 को ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने मामले में पुलिस की फाइनल/क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका खारिज कर दी थी।

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न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने अब आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 (उच्च न्यायालय की निहित शक्तियाँ) के तहत परवाज़ और अन्य की याचिका को खारिज कर दिया है, लागत को चार सप्ताह के भीतर सेना कल्याण कोष युद्ध हताहतों में जमा किया जाना है, जो विफल हो गया है। इसे याचिकाकर्ता की सम्पदाओं/परिसंपत्तियों से भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "याचिकाकर्ता एक व्यस्त व्यक्ति प्रतीत होता है जो खुद कई आपराधिक मामलों का सामना कर रहा है, और वह 2007 से इस मामले को लड़ रहा है। याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट, इस अदालत और अदालत के समक्ष इस मामले को लड़ने के लिए वकील को नियुक्त करने में भारी खर्च करना पड़ रहा होगा।"

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राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने तर्क दिया कि "विरोध याचिका में उठाए गए मुद्दों और इस याचिका में सर्वोच्च न्यायालय तक अंतिम रूप प्राप्त कर लिया था। याचिकाकर्ता को एक ही मुद्दे को बार-बार उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। एक बार सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की वैधता की याचिका पर विचार नहीं किया है, अभियोजन पक्ष की मंजूरी से इनकार करते हुए, ट्रायल कोर्ट ने उक्त मुद्दे पर जाने से इनकार कर दिया है।"

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