जब गायकी के हुनर ने आल्हा गायक भाईयों को फांसी की सजा से बचाया

Edited By Ruby,Updated: 06 Aug, 2019 12:24 PM

when the singer s skill saved abha singer brothers from hanging sentence

महोबा: निर्जीव में भी प्राण फूंक देने वाला वीर रस का महाकाब्य आल्हा बुंदेली शूरवीरता का ऐसा अप्रतिम गीत है जिससे एक समय मौत भी गच्चा खा गई थी। उत्तर प्रदेश में महोबा जिले से जुड़े इस मामले में हत्या अपराधी ठहराए गए ...

महोबा: निर्जीव में भी प्राण फूंक देने वाला वीर रस का महाकाब्य आल्हा बुंदेली शूरवीरता का ऐसा अप्रतिम गीत है जिससे एक समय मौत भी गच्चा खा गई थी। उत्तर प्रदेश में महोबा जिले से जुड़े इस मामले में हत्या अपराधी ठहराए गए अल्हैत (आल्हा गायक) दो भाईयों ने अपनी गायकी के हुनर से न सिफर् फांसी की सजा से बचा लिया था बल्कि तत्कालीन हुक्मरानों से उन्हें ससम्मान बरी भी कर दिया।      

ऐतिहासिक दस्तावेजो में दर्ज यह प्रकरण भारत की स्वाधीनता से पूर्व 20वीं शताब्दी के चौथे दशक का है। देश में उस समय गोरी हुकूमत काबिज थी। महोबा समेत चरखारी व कुलपहाड़ तहसीलें हमीरपुर जिले में ही शामिल थी। चरखारी के खरेला गांव निवासी ठाकुर शिवराम सिंह के दो अन्य भाइयों द्वारिका सिंह व गौरीशंकर सिंह पर गांव के ही कतिपय लोगों से जमीन जायदाद को लेकर हुए विवाद में हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था। 

न्यायाधीश द्वारा उन्हें इस मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी। अंग्रेजी कानून के मुताबिक तब निर्धारित तिथि पर दोनों को एक मैदान में सार्वजनिक तौर पर फांसी में लटकाए जाने का हुक्म दिया गया था। मौके पर मौजूद अंग्रेज हुक्मरान ने फांसी पर चढ़ाने से पूर्व उक्त दोनों भाइयों से उनकी अंतिम इच्छा पूँछी। इस पर उन्होंने अपने भाई शिवराम सिंह का आल्हा गायन सुनते हुए मौत को गले लगाने की ख्वाहिश जताई। इतिहासकार संतोष पटेरिया ने बताया कि अपने आप में अनूठी और अद्वितीय इस घटना में ठाकुर शिवराम सिंह ने जब आल्हा का गायन शुरू किया तो इतिहास रच गया। मौके पर मौजूद सैकड़ों की भीड़ और अंग्रेज हुक्मरान उनकी गायकी में सुधबुध खो बैठे और फांसी का निर्धारित समय कब गुजर गया इसका किसी को पता ही नही चला। बाद में दोनों की फांसी की सजा निरस्त कर दी गई।       

बॉलीवुड कलाकार और अल्हैत शिवराम सिंह के प्रपौत्र पदम सिंह ने बताया कि श्रोताओं में जोश का उबाल पैदा कर देने वाली ठाकुर शिवराम सिंह की आल्हा गायन की बुंदेलखंडी शैली ने लोकप्रियता के ऊंचाइयों भरे अनेक आयाम तय किये है। अल्हैत शिवराम सिंह के परिवार में दूसरा कोई आल्हा गायक तो नही हुआ लेकिन गुरु शिष्य परंपरा में उस गायकी की चौथी पीढ़ी आज मौजूद है। खरेला में बीते 79 वर्षो से इस आल्हा गायक की स्मृति में कजली के अवसर पर तीन दिवसीय आल्हा गायन कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। जिसमें देश भर से नामचीन आल्हा गायक जुटते है। आल्हा गायकी की विधा के धीरे-धीरे विलुप्त होते जाने के बावजूद पिछले वर्ष कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नवोदित आल्हा गायकों के जुटने पर लोगो मे अपार हर्ष की अनुभूति हुई थी।

 

 

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