Edited By Pooja Gill,Updated: 10 Aug, 2024 12:18 PM
Prayagraj News: तीर्थराज प्रयाग में गंगा और यमुना नदियों में उफान के कारण स्थानीय और दूर दराज से आने वाले लोगों को अपने प्रियजनों की अंत्येष्टि को गंगा घाट से हटकर पास में सड़क पर करना पड़ रहा है। शहर में दारागंज और रसूलाबाद गंगा तट पर अंत्येष्टि की...
Prayagraj News: तीर्थराज प्रयाग में गंगा और यमुना नदियों में उफान के कारण स्थानीय और दूर दराज से आने वाले लोगों को अपने प्रियजनों की अंत्येष्टि को गंगा घाट से हटकर पास में सड़क पर करना पड़ रहा है। शहर में दारागंज और रसूलाबाद गंगा तट पर अंत्येष्टि की जाती है। दोनों घाट जनामग्न हो गये हैं जिस कारण शवों के अंतिम संस्कार सड़क पर किए जा रहे हैं। दारागंज में अंतिम संस्कार के लिए कोई विशेष घाट नहीं है। आस-पास और दूर दराज से आने वाले लोग शास्त्री पुल के नीचे गंगा तट पर ही अपने मृत परिजनों की अंत्येष्टि करते हैं। बाढ़ के कारण अंत्येष्टि का स्थल जलमग्न हो गया है जिस कारण लोगों को सड़कों पर ही अंत्येष्टि करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
उफान पर हैं गंगा और यमुना नदी
बता दें कि दारागंज घाट पर अंत्येष्टि करने वाले अमन ने बताया कि भारी बारिश के चलते प्रयागराज में गंगा और यमुना नदी उफान पर हैं। श्मशान घाट पानी में डूब गए हैं जिसकी वजह से अंतिम संस्कार के लिए लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। दारागंज में शास्त्री पुल के नीचे गंगा बहती है। बाढ़ से पहले गंगा तट से चंद कदमों की दूरी पर चिता सजाकर अंत्येष्टि की जाती थी। अंत्येष्टि स्थल के बगल से बह रही गंगा जल से धोने पर वह जल फिर गंगा के साथ मिल जाता था। प्रयागराज में शहर के अलावा आस-पास के जिलों से यहां पर लोग अपने प्रियजनों की अंत्येष्टि करने पहुंचते हैं। बाढ़ से पहले प्रतिदिन यहां 45-50 लोगों की अंत्येष्टि की जाती थी जबकि अब रसूलाबाद घाट के बंद होने के कारण वहां से भी लोग यहीं पर पहुंच रहे है जिस कारण अब करीब 100 लोगों की अंत्येष्टि की जा रही है।
शव को जलने में लगता है अधिक समय
बाढ़ के कारण कुछ लोग तो अपने नजदीक ही प्रियजन की अंत्येष्टि कर देते हैं, लेकिन इस बदतर स्थिति में भी लोग घाट पर पहुंचकर शव की अंत्येष्टि कर रहे हैं। अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां प्लास्टिक से ढक कर रखी जाती है। सूखी लकड़ियां इतनी जल्दी गीली नहीं होती हैं। उनके ऊपर का छिलका गीला हो जाता है, लेकिन दाह संस्कार में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती। लोगों ने बताया कि चिता में आग लगाने के लिए सरपत की मदद ली जाती है उसके बाद आग में तेजी लाने के लिए लार का उपयोग किया जाता। आग में लार को फेंकने से उसमें और तेजी उठती है जिससे लकड़ी लगातार जलती रहती है और शव को पूरा जलने में अधिक समय नहीं लगता।