Edited By Mamta Yadav,Updated: 24 Apr, 2022 09:13 PM

आजमगढ़ में हिंदुस्तान की मिली-जुली संस्कृति और आपसी भाईचारे की एक और मिसाल सामने आई है। शहर के एलवल मोहल्ले के रहने वाले परवेज के घर पड़ोसी राजेश चौरसिया की भांजी की शादी का मंडप सजा और पूरे हिंदू रीति-रिवाज से के साथ विवाह संपन्न हुआ। शहर के एलवल...
आजमगढ़: आजमगढ़ में हिंदुस्तान की मिली-जुली संस्कृति और आपसी भाईचारे की एक और मिसाल सामने आई है। शहर के एलवल मोहल्ले के रहने वाले परवेज के घर पड़ोसी राजेश चौरसिया की भांजी की शादी का मंडप सजा और पूरे हिंदू रीति-रिवाज से के साथ विवाह संपन्न हुआ। शहर के एलवल मोहल्ले के निवासी राजेश चौरसिया की भांजी पूजा की शादी तय हुई थी।

पूजा के पिता की दो साल पहले कोविड-19 संक्रमण की वजह से मौत हो गई थी। छोटे से घर में रहने वाले राजेश के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि शादी किस स्थान पर की जाए। राजेश की आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं थी कि वह भांजी की शादी के लिए किसी मैरिज हॉल का प्रबंध कर सकें। राजेश ने बताया कि उन्होंने जब अपनी यह समस्या अपने पड़ोसी परवेज को बताई और उनके घर के आंगन में शादी का मंडप सजाने की बात कही, तो परवेज तुरंत राजी हो गए। शादी की तय तारीख 22 अप्रैल को परवेज के आंगन में मंडप सजाया गया और परवेज के घर की महिलाओं ने भी मंगल गीत गाए।

उन्होंने बताया कि शादी वाले दिन शाम को जौनपुर जिले के मल्हनी इलाके से भांजी की बारात परवेज के दरवाजे पहुंची तो दोनों परिवारों ने द्वारचार की रस्म अदा की। उसके बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच सभी वैवाहिक रस्में अदा की गई और शुभ विवाह संपन्न हुआ। रमजान के पवित्र महीने में इंसानियत की मिसाल पेश करती पहल के दौरान परवेज और राजेश के परिवार की महिलाएं देर रात तक शादी के मंगल गीत गाती रहीं। राजेश ने बताया कि सुबह बारात विदा होने से पहले खिचड़ी की रस्म शुरू हुई तो उन्होंने अपनी सामर्थ्य के हिसाब से वर पक्ष को तोहफे दिए। इसी रस्म के दौरान परवेज ने दूल्हे को सोने की जंजीर पहनाई। इसके बाद बारात वधु को लेकर विदा हो गई।
परवेज की बीवी नादिरा ने कहा, "पूजा की मां बचपन में अक्सर उनके घर पर ही रहती थीं और उन्हें परिवार की सदस्य माना जाता था। अब पूजा की शादी थी। उस नाते अपना फर्ज भी निभाना जरूरी था।'' नादिरा ने कहा कि ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि पूजा और उसकी मां हमारे घर की बेटियां हैं, बल्कि इसलिए भी कि इंसानियत का यही तकाजा था। उन्होंने कहा कि हमारे धर्म भले अलग-अलग हों, लेकिन इंसानियत सबसे बड़ी चीज है। रमजान के पाक महीने में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की एक और मिसाल पेश करता यह वाकया अपने आप में बहुत सुखद अहसास कराता है। क्षेत्र में इसकी खासी चर्चा है।