Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 03 Jan, 2020 10:26 AM
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या राम मंदिर की निर्माण को लेकर सरकार की गतिविधियां तेज हो गई है। इसी के तहत साथ शुरू हो गई हैं 18 साल बाद उन दो...
अयोध्याः सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या राम मंदिर की निर्माण को लेकर सरकार की गतिविधियां तेज हो गई है। इसी के तहत साथ शुरू हो गई हैं 18 साल बाद उन दो राम शिलाओं के बाहर आने की जो 15 मार्च 2002 को तत्कालीन अटल विहारी वाजपेयी की सरकार में गठित अयोध्या प्रकोष्ठ के प्रभारी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को सौंपी थी। तब से शिलाएं ट्रेजरी में हैं।
अयोध्या आंदोलन के प्रमुख किरदार रामचंद्र परमहंस व अशोक सिंहल ने सौंपी थी शिलाएं
बता दें कि जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष और अयोध्या आंदोलन के प्रमुख किरदार दिगंबर अखाड़ा के प्रमुख रामचंद्र परमहंस और विहिप के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंहल ने तत्कालीन केंद्र सरकार को सौंपा था। तब से शिलाएं ट्रेजरी में हैं।
स्व.परमहंस व सिंहल की थी इच्छा मंदिर के गर्भगृह में लगाई जाएं शिलाएं
चूंकि ये शिलाएं पूजित शिलाएं हैं और स्व. परमहंस व सिंहल की इच्छा इन्हें श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर बनने वाले मंदिर के गर्भगृह में लगाने की थी। इसलिए संतों व विहिप की कोशिश है कि मंदिर निर्माण प्रारंभ होने से पहले ही इन शिलाओं को ट्रेजरी से बाहर ले आया जाए।
संतों की केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में हुआ निर्णय
प्रयाग में इसी महीने हो रहे माघ मेले के दौरान वहां होने वाली संतों की केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में इस बारे में विचार-विमर्श करके किसी शुभ मुहूर्त पर इन शिलाओं को ट्रेजरी से बाहर लाने के बारे में भी निर्णय होगा।
क्यों महत्वपूर्ण हैं राम शिलाएं
शिलादान कार्यक्रम में शामिल रहे विहिप के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा कहते हैं कि ट्रेजरी में रखीं दोनों राम शिलाएं कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं। एक तो ये शिलाएं स्व. परमहंस और सिंहल जैसे उन लोगों ने पूजन करके सरकार को सौंपी थी जिनका इस पूरे आंदोलन में अतुलनीय योगदान है। ऊपर से ये दोनों शिलाएं अयोध्या आंदोलन के इन दोनों सूत्रधारों के साथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्यनाथ सहित तमाम संतों, विहिप के महेशनारायण सिंह, कोठारी बंधुओं सहित उन तमाम कारसेवकों को श्रद्धांजलि का भी माध्यम हैं जो अपने जीते जी मंदिर निर्माण का सपना साकार होते नहीं देख पाए। इसलिए भी इन्हें गर्भगृह जैसे मुख्य पवित्र स्थल पर लगाना है।
यह था पूरा मामला
वर्ष 2002 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार थी। प्रदेश में राजनाथ सिंह के नेतृत्व में सरकार थी। कारसेवा आंदोलन शुरू हुए और ढांचा गिरे हुए एक दशक से ऊपर हो रहा था लेकिन मंदिर निर्माण को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो रही थी। संतों में नाराजगी बढ़ रही थी और विहिप पर सवाल उठ रहे थे। खींचतान तेज होने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने अधीन अयोध्या प्रकोष्ठ गठन करके संतों और हिंदुओं को मंदिर का रास्ता निकालने के गंभीर प्रयास का संदेश देने का संदेश देने की कोशिश की।
तत्कालीन अध्यक्ष परमहंस ने अयोध्या में किया था 100 दिन यज्ञ
श्रीराम जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष परमहंस ने अयोध्या में सौ दिन की यज्ञ करके 15 मार्च 2002 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण शुरू करने की घोषणा कर दी। उधर, 13 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित स्थल पर यथास्थिति का सख्त निर्देश दे दिया। परमहंस ने प्राण दे देने का एलान कर दिया।आखिरकार वाजपेयी खुद आगे आए और उन्होंने परमहंस से फोन पर बात कर विवादित स्थल पर न जाने के लिए मनाकर उन्हें प्रतीकात्मक शिलादान के लिए राजी किया।