राजूपाल और उमेशपाल की हत्याओं से माफिया अतीक के सियासी-आपराधिक सफर पर लगा ब्रेक

Edited By Ajay kumar,Updated: 29 Mar, 2023 08:48 PM

murders of rajupal and umeshpal put a brake on the mafia ateeq

दो पाल की हत्याओं ने माफिया अतीक अहमद के सियासी और आपराधिक सफर पर ब्रेक लगा दिया हैं। राजू पाल की हत्या के बाद वह एक ही सियासी पारी खेल सका। वह सिर्फ एक बार ही वह अपने भाई अशरफ को प्रयागराज शहर के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनवा सका।

लखनऊ:  दो पाल की हत्याओं ने माफिया अतीक अहमद के सियासी और आपराधिक सफर पर ब्रेक लगा दिया हैं। राजू पाल की हत्या के बाद वह एक ही सियासी पारी खेल सका। वह सिर्फ एक बार ही वह अपने भाई अशरफ को प्रयागराज शहर के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनवा सका। वहीं उमेश पाल की हत्या के बाद तो उसके आपराधिक कारोबार की उल्टी गिनती ही शुरू हो गई। जरायम की दुनिया में अपना सिक्का चलाने के बाद अतीक जब सियासत में दाखिल हुआ। उसे सका। अपने सियासती सफर में (1999 से) विधायकी से लेकर सांसदी (साल 2004) तक हर चुनाव में कामयाबी मिलती गई। अतीक के सियासी सफर पर ब्रेक तब लगा जब जनवरी 2005 को विधायक राजू पाल की हत्या हो गई। दिन-दहाड़े हुई इस सनसनीखेज वारदात में अतीक और उसका भाई अशरफ आरोप बने और दोनों जेल चले गए। फिलहाल दो दशक से ज्यादा समय जरायम की दुनिया में अपनी धमक कायम करने वाले इस माफिया के लोग एनकाउंटर में मारे जा रहे हैं। अतीक का पूरा परिवार और उसके शूटर जान बचाने को मारे-मारे फिर रहे हैं।

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माफिया-राजनीति और अपराध के गठजोड़ का मिशाल बना अतीक को पहली बार उम्रकैद जैसी बड़ी सजा मिली। अतीक के जुर्म की लंबी दास्तान है, जो प्रयागराज से शुरू होकर उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में कुख्यात है, लेकिन अब उसका तिलिस्म टूटने लगा है। यह उसके साबरमती जेल से आने और अदालत की पेशी के दौरान खूब दिखा। एक समय वह था जब उसके खौफ के चलते 10 जजों ने उससे जुड़े मुकदमों की सुनवाई से अपने को अलग कर लिया था। मंगलवार को वह समय भी दिखा जब अदालत में ही फांसी दो के नारे लगने लगे। कुछ लोग जूते की माला पहनाने पहुंच गए थे।

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पहले सियासत में हुआ नाकामयाब
अतीक ने लोकसभा और विधानसभा के कई चुनाव लड़े, लेकिन हर चुनाव में उसे नाकामयाबी ही हाथ लगी। प्रयागराज के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से 2007 में अशरफ और 2012 में अतीक भी चुनाव हार गया। उसके बाद अतीक ने 2009 में प्रतापगढ़ व 2014 में श्रावस्ती लोकसभा चुनाव, 2018 में फूलपुर के उपचुनाव, 2019- में वाराणसी सीट से पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा में अतीक को हार का ही सामना करना पड़ा। हालांकि राजू पाल की हत्या के बाद शहर पश्चिमी सीट पर हुए उपचुनाव अशरफ के चुनाव जितवाने में सफल रहा है। दरअसल, सांसद बनने के बाद अतीक को विधानसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी थी। उसने इस सीट पर अपने छोटे भाई अशरफ को सपा के टिकट पर चुनाव लड़वाया, लेकिन उस चुनाव में बसपा प्रत्याशी के रूप में दबंग राजू पाल उन्हें शिकस्त देकर यह सीट हथिया ली थी। उसी के बाद से प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामने तनकर खड़े दबंग राजू पाल को रास्ते से हटाने की तैयारी शुरू हो गई थी।

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फिर आपराधिक जमीन पड़ती जा रही कमजोर
वैसे तो प्रदेश सरकार ने कुख्यात बदमाश विकास के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद आरोपों के घेरे से निकलने को माफिया के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी थी। मुख्तार और अतीक के आर्थिक और आपराधिक साम्राज्य को लगातार ध्वस्त करने की दिशा में सरकारी मशीनरी जुटी हुई है, लेकिन 24 फरवरी 2023 को राजू पाल हत्याकांड के मजबूत गवाह उमेश पाल और उनके दो सरकारी गनर की हत्या के बाद तो मुख्तार और उसके गैंग का मिट्टी में मिलाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई।

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