UP Politics News: बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने के संकेत फिलहाल नहीं

Edited By Imran,Updated: 14 Aug, 2022 05:25 PM

like bihar there is no sign of the opposition uniting against the bjp

बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एकजुट होने का यहां विपक्षी नेताओं ने भले स्वागत किया है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने के संकेत...

लखनऊ: बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एकजुट होने का यहां विपक्षी नेताओं ने भले स्वागत किया है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने के संकेत फिलहाल नहीं हैं।

विपक्षी दलों ने स्वीकार किया है कि उत्तर प्रदेश (उप्र) में भाजपा को हराना केंद्र की सत्ता से उसे बाहर करने के लिए जरूरी है। लेकिन भाजपा से मुकाबला करने के लिए एकजुट होने की आवश्यकता अच्छी तरह से जानने के बावजूद उप्र में किसी भी विपक्षी दल ने अभी तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीट हैं। उप्र में भाजपा की सीटों में उल्लेखनीय वृद्धि होने से पार्टी को केंद्र की सत्ता में भी काबिज होने में मदद मिली थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को राज्य में 10 सीट पर जीत मिली थी, जो 2014 के आम चुनाव में बढ़ कर 71 हो गई और 2019 में उसे 62 सीट पर जीत मिली थी। राज्य में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) पिछले कुछ चुनावों में अलग-अलग तरह के गठजोड़ करके चुनाव लड़ी लेकिन भाजपा को शिकस्त देने में नाकाम रही। \

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था लेकिन भाजपा दो-तिहाई बहुमत से चुनाव जीतने में कामयाब रही। इसके बाद, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के साथ महागठबंधन बनाया तथा 2022 का विधानसभा चुनाव रालोद और अन्य दलों के साथ गठजोड़ कर लड़ा, लेकिन वह राज्य में भाजपा को शिकस्त देने में नाकाम रही। नीतीश कुमार ने जब नौ अगस्त को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) छोड़ने और बिहार में सरकार गठन के लिए राजद से हाथ मिलाने का ऐलान किया, तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस फैसले का स्वागत किया। अखिलेश ने कहा था, ''आज के दिन यह अच्छी शुरुआत है, जब अंग्रेजों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो' नारा दिया गया था। अगर बिहार से ‘भाजपा भगाओ' नारा आया है तो मुझे यह लगता है कि अन्य प्रदेशों में भी इसी तरह बहुत जल्द भाजपा के खिलाफ अन्य दल और जनता भी खड़ी हो जाएगी।" लेकिन उनकी पार्टी (सपा) ने उनके गृह राज्‍य (उप्र) में विपक्षी दलों के गठबंधन के लिए काम करने का कोई इरादा जाहिर नहीं किया है। सपा के राष्ट्रीय सचिव एवं मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने 'पीटीआई-भाषा' से बातचीत में कहा कि भाजपा को परास्त करने में उनकी पार्टी सक्षम है और वह मायावती नीत बसपा से कोई गठजोड़ नहीं करेगी। चौधरी ने कहा, ''सपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।'' हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद पीएल पुनिया उत्तर प्रदेश में भी उम्मीद की एक किरण देख रहे हैं।

गौरतलब है कि कांग्रेस बिहार में महागठबंधन का हिस्सा है। पुनिया ने कहा ''बिहार में जब भाजपा के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो सकता है तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं।'' लेकिन जब उनसे यह सवाल किया गया कि क्या इसके लिए कोई पहल की गई है तो उन्होंने कहा, ''मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है।'' भाजपा के बढ़ते जनाधार को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में गठबंधन का सबसे पहला प्रयोग सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने बसपा संस्थापक कांशीराम के साथ मिलकर 1993 के विधानसभा चुनाव में किया और राज्य में सरकार बनाई। हालांकि, मुलायम और मायावाती के बीच मतभेद बढ़ने के चलते दो वर्ष के भीतर ही सपा-बसपा गठजोड़ टूट गया। करीब 24 वर्ष बाद 2019 में, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा प्रमुख मायावती के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ा। चुनाव में मायावती की पार्टी को 10 सीट पर जीत मिली लेकिन सपा को सिर्फ पांच सीट पर जीत से ही संतोष करना पड़ा और यह फार्मूला बहुत कारगर साबित नहीं हुआ। चुनाव परिणाम आने के कुछ ही दिनों बाद ही सपा-बसपा का गठबंधन भी टूट गया। इसके बाद, बसपा ने 2022 का विधानसभा चुनाव अपने बूते लड़ा और भविष्य में किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करने की घोषणा की। 

बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी की संगठनात्मक बैठकों में यह दावा किया कि उप्र में सिर्फ उनकी पार्टी ही भाजपा को हरा सकती है। उत्तर प्रदेश में हालिया विधानसभा चुनाव में सभी बड़े दलों ने अलग-अलग राह चुनी। भाजपा और मुख्य विपक्षी सपा ने जरूर छोटे दलों को साथ लेकर गठबंधन का प्रयोग किया, लेकिन सपा का गठजोड़ विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद कमजोर पड़ गया। सपा ने जिन दलों के साथ हालिया विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया था, उनमें शिवपाल सिंह यादव की अगुवाई वाली प्रगितशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) और ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) सपा का साथ छोड़ चुकी है। हालांकि, शिवपाल ने इटावा में शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘‘जिस तरह की परिपक्वता बिहार के नेताओं ने दिखाई है, उसी तरह की परिपक्वता की जरूरत उत्तर प्रदेश में है। तभी यहां बदलाव लाया जा सकता है।'' उत्तर प्रदेश की राजनीति में अति पिछड़ों-दलितों के हक की वकालत करने वाले राजभर ने हाल में कहा था, ''अगर अखिलेश यादव और मायावती दलितों-पिछड़ों का भला चाहते हैं तो उन्‍हें एक साथ आना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगले लोकसभा चुनाव में उप्र में भाजपा सभी 80 सीट जीत जाएगी।'' 

उप्र में 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ गठजोड़ करने वाले राजभर ने विपक्षी एकता की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा, ''बिहार के बदलाव ने विपक्ष को एकजुट होने की सीख दी है और हरियाणा में इसकी गूंज सुनाई देने लगी है।'' उन्होंने कहा कि सपा और बसपा समेत अगर विपक्षी दल साथ मिलकर चुनाव लड़ें तो भाजपा का सफाया हो सकता है। उन्होंने 2014 के आम चुनाव में विपक्ष का चेहरा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनाये जाने का भी समर्थन किया। हालांकि, सपा के राजेंद्र चौधरी ने जोर देते हुए कहा कि उप्र में भाजपा को सिर्फ सपा ही शिकस्त दे सकती है। हालिया उपचुनावों में उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीट पर जीत हासिल करने के बाद राज्य से लोकसभा की 80 सीटों में से भाजपा के पास अभी 64 सीट हैं। इन दोनों सीट-आजमगढ़ और रामपुर- को कभी सपा का गढ़ माना जाता था। इस बीच, भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के नेताओं ने बिहार के घटनाक्रम के बाद विपक्षी दलों के उत्साह को फीका करने की कोशिश की है। 

भाजपा सांसद सुब्रत पाठक ने कहा, ‘‘दिन में सपने देखने के कोई नुकसान नहीं हैं...लेकिन दिन में देखे गये सपने पूरे नहीं होते।'' उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ देश के बल्कि दुनिया के लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं। वहीं, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल नीत अपना दल (सोनेलाल) ने बिहार के घटनाक्रम का उप्र पर कोई प्रभाव पड़ने से इनकार किया है। पार्टी प्रवक्ता राजेश पटेल ने कहा कि नीतीश कुमार का उप्र में कोई प्रभाव नहीं है। 

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