Edited By Ramkesh,Updated: 13 Jun, 2025 07:19 PM

पांच साल पहले हुए बिकरू कांड की भयावह यादें आज भी जिंदा हैं। 2 जुलाई 2020 की रात, कुख्यात अपराधी विकास दुबे और उसके गैंग द्वारा किए गए हमले में आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, जबकि कई गंभीर रूप से घायल हुए थे। अब, इन घायल पुलिसकर्मियों के सामने एक नया...
कानपुर [प्रांजुल मिश्रा]: पांच साल पहले हुए बिकरू कांड की भयावह यादें आज भी जिंदा हैं। 2 जुलाई 2020 की रात, कुख्यात अपराधी विकास दुबे और उसके गैंग द्वारा किए गए हमले में आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, जबकि कई गंभीर रूप से घायल हुए थे। अब, इन घायल पुलिसकर्मियों के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है।
इलाज के लिए मिली मदद, अब मांगी जा रही वापस
बिकरू मुठभेड़ में घायल हुए पुलिसकर्मियों — थानाध्यक्ष कौशलेंद्र प्रताप सिंह, दारोगा सुधाकर पांडे, अजय कश्यप, और सिपाही अजय सिंह सेंगर व शिवमूरत — को इलाज के लिए तत्कालीन प्रशासन ने जीवन रक्षक निधि से लगभग ₹6.5 लाख प्रति व्यक्ति की आर्थिक सहायता दी थी। यह सहायता गंभीर चोटों और निजी अस्पतालों में हुए महंगे इलाज को देखते हुए तत्काल प्रदान की गई थी।अब विभाग ने इन पुलिसकर्मियों को एक नोटिस जारी कर कहा है कि उन्हें यह राशि लौटानी होगी। नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि यदि पैसा समय पर वापस नहीं किया गया, तो वेतन से हर महीने 20 प्रतिशत की कटौती कर यह रकम वसूली जाएगी।
"हमें नहीं बताया गया था कि पैसा लौटाना होगा"
इस निर्णय से आहत घायल पुलिसकर्मियों ने कानपुर के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर विनोद कुमार सिंह से मुलाकात कर न्याय की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि उन्हें कभी भी यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि यह धनराशि लोन है, न कि सहायता। वे इसे सरकारी मदद समझ कर इलाज करवा रहे थे। एक पुलिसकर्मी ने भावुक होते हुए कहा "अगर हमें बताया गया होता कि पैसा लौटाना होगा, तो शायद हम अपने संसाधनों से इलाज करवाते। लेकिन उस समय हम मौत के मुंह में थे।"
ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर का आश्वासन
विनोद कुमार सिंह ने पुलिसकर्मियों की पीड़ा को समझते हुए उन्हें भरोसा दिलाया है कि इस मामले को वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष रखा जाएगा और न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की जाएगी।
"विकास दुबे मरा, पर उसकी परछाईं ज़िंदा है"
घायल जवानों का कहना है कि विकास दुबे की मौत के बावजूद उसका डर, उसकी छाया अब भी उनका पीछा नहीं छोड़ रही। शरीर पर लगे घाव तो ठीक हो रहे हैं, लेकिन विभागीय आदेशों ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ कर रख दिया है। अब बड़ा सवाल यह है क्या अपने कर्तव्य पर घायल हुए इन पुलिसकर्मियों को वह इज्जत और राहत मिलेगी जिसके वे हकदार हैं, या फिर उन्हें अपने ही सिस्टम से न्याय के लिए संघर्ष करना होगा?