बाल गृहों को वित्तीय मदद न मिलने पर हाईकोर्ट सख्त, अधिकारी को किया तलब

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 08 Nov, 2020 10:32 AM

high court strict on not getting financial help to child houses

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने बाल गृहों में रहने वाले बच्चों के हित में सरकार से मिलने वाली अर्थिक मदद (अनुदान व गैर आवर्ती अनुदान) को अदालत द्वारा तय समय में जारी न/न किए जाने पर सख्त नाराजगी व्यक्त करते हुए प्रदेश के महिला कल्याण...

लखनऊः इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने बाल गृहों में रहने वाले बच्चों के हित में सरकार से मिलने वाली अर्थिक मदद (अनुदान व गैर आवर्ती अनुदान) को अदालत द्वारा तय समय में जारी न/न किए जाने पर सख्त नाराजगी व्यक्त करते हुए प्रदेश के महिला कल्याण विभाग के विशेष सचिव स्तर के अधिकारी को सहयोग के लिए 11 नवम्बर को तलब किया है। अदालत ने अपेक्षा की है कि अब इस सम्बन्ध में केंद्र या राज्य सरकार की तरफ से आगे देरी नहीं होगी और जल्दी से जरूरी औपचारिकएं पूरी करने के बाद बाल गृहों के बच्चो व किशोरों की बेहतरी के लिए वांछित अनुदान जारी किया जाएगा। 

न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति राजन राय की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण आदेश वर्ष 2008 से लंबित एक जनहित याचिका पर दिया। इसमें प्रदेश के बाल संरक्षण गृहों की खस्ताहालत में सुधार समेत समय पर फंड मुहैया कराने के निर्देश दिये जाने की गुजरिश की गई थी। पहले, समय-समय पर न्यायालय ने इसके लिए सरकारों को निर्देश दिए थे। मामले की सुनवाई के दौरान केस में नियुक्त न्यायमित्र अपूर्व तिवारी ने अदालत को बताया था कि राजधानी के द्दष्टि सामजिक संस्थान को अभी तक वित्तीय मदद की आवर्ती व गैर आवर्ती अनुदान (ग्रांट) नहीं मिला है, जो 10 लाख से 50 लाख रूपए तक की होता है।

अदालत ने कहा कि ऐसे में संस्थान किसी तरह से कर्ज लेकर अपने संसाधनों से काम चला रहा है। राज्य सरकार के वकील ने न्यायालय को बताया था कि यूपी सरकार को इसके लिए केंद्र से समय से फंड नहीं मिल रहा है। इसपर केंद्र सरकार के अधिवक्ता का कहना था कि यूपी सरकार को फंड देने की कार्यवाही चल रही है जिसके पूरा होने पर बाकी कोष को जारी कर दिया जायेगा।

पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा था कि कोरोना काल के मुश्किल समय में भी इनमें रह रहे बच्चों (किशोर अपचारियों) का हित और उनका कल्याण सर्वोपरि है। वित्तीय कमी का तकर् इनके आड़े नहीं आना चाहिए, क्योंकि किशोर न्याय अधिनियम- 2015 और इसके नियमों के तहत इनके बेहतर हित की हिफाजत, राज्य की शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए। अदालत ने इस अहम टिप्पणी के साथ केंद्र व राज्य सरकार से अपेछा की थी कि वे इसका पालन करें। न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 11 नवम्बर को तय की है। 
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!