स्वयं भगवान विश्वनाथ का स्वरूप है ज्ञानवापी, "मस्जिद" कहना "दुर्भाग्यपूर्ण": योगी

Edited By Ramkesh,Updated: 14 Sep, 2024 08:24 PM

gyanvapi is the form of lord vishwanath himself yogi

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि ज्ञानवापी को "मस्जिद" कहना "दुर्भाग्यपूर्ण" है और ज्ञानवापी स्वयं "भगवान विश्वनाथ" का एक सच्चा स्वरूप है। योगी ने शनिवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में ‘समरस समाज के...

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि ज्ञानवापी को "मस्जिद" कहना "दुर्भाग्यपूर्ण" है और ज्ञानवापी स्वयं "भगवान विश्वनाथ" का एक सच्चा स्वरूप है। योगी ने शनिवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में ‘समरस समाज के निर्माण में नाथपंथ का अवदान' विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की, जहां उन्होंने काशी और ज्ञानवापी के पूजनीय स्थल के आध्यात्मिक महत्व पर भी प्रकाश डाला।

  सीएम योगी ने पौराणिक ऋषि आदि शंकर का किया वर्णन 
उन्होंने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग ज्ञानवापी को मस्जिद कहते हैं, जबकि यह स्वयं भगवान विश्वनाथ का स्वरूप है।" मुख्यमंत्री ने पौराणिक ऋषि आदि शंकर का भी विस्तृत उल्लेख किया और काशी में भगवान विश्वनाथ के साथ शंकर की मुलाकात के बारे में एक किस्सा सुनाया, जहां देवता ने एक बहिष्कृत व्यक्ति के रूप में प्रकट होकर शंकर की अद्वैत की समझ का परीक्षण किया। किस्सा सुनाते हुए ही मुख्यमंत्री ने ज्ञानवापी को स्वयं भगवान का प्रत्यक्ष स्वरूप बताया। मुख्यमंत्री ने कहा, "दुर्भाग्य से ज्ञानवापी को आज लोग दूसरे शब्दों में मस्जिद कहते हैं, लेकिन ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ ही है...।" उन्होंने कहा, "केरल में जन्मे आदि शंकर ने देश के चारों कोनों में धर्म-आध्यात्म के लिए महत्वपूर्ण पीठों की स्थापना की।

भगवान विश्वनाथ एक 'अछूत' के वेश में शंकर की परीक्षा ली 
आदि शंकर जब अद्वैत ज्ञान से परिपूर्ण होकर काशी आए तो भगवान विश्वनाथ ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। ब्रह्म मुहूर्त में जब आदि शंकर गंगा स्नान के लिए निकले तब भगवान विश्वनाथ एक 'अछूत' के वेश में उनके सामने खड़े हो गए। आदि शंकर ने जब उनसे मार्ग से हटने को कहा तब उसी रूप में भगवान विश्वनाथ ने उनसे पूछा कि आप यदि अद्वैत ज्ञान से पूर्ण हैं तो आपको सिर्फ भौतिक काया नहीं देखनी चाहिए। यदि ब्रह्म सत्य है तो मुझमें भी वही ब्रह्म है जो आपमें है। हतप्रभ आदि शंकर ने जब अछूत बने भगवान का परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि मैं वही हूं, जिस ज्ञानवापी की साधना के लिए वह (आदि शंकर) काशी आए हैं।

सीएम योगी के बयान का अयोध्या के संतो ने किया समर्थन 
मुख्यमंत्री ने कहा कि ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ स्वरूप ही है। ज्ञानवापी का मुद्दा लंबे समय से कानूनी जांच के केंद्र में रहा है, जिसमें हिंदू पक्ष का तर्क है कि ज्ञानवापी मस्जिद पहले से मौजूद मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इस दावे का विरोध किया है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री की टिप्पणी ने एक तरह का विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें विपक्षी समाजवादी पार्टी(सपा) ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री पर निशाना साधा, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अयोध्या के कुछ संतों ने उनका समर्थन किया है। मुख्यमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्बास हैदर ने कहा, "ऐसा लगता है कि वह (योगी आदित्यनाथ) अदालत का सम्मान नहीं करते हैं।

सपा प्रवक्ता बोले- सीएम अदालत का सम्मान नहीं करते 
मामला अदालत में लंबित है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री ने संविधान की शपथ ली है, लेकिन ऐसा लगता है कि वह अदालत का उचित सम्मान नहीं कर रहे हैं। अपने निहित राजनीतिक हितों के लिए, वह समाज को विभाजित कर रहे हैं।" हैदर ने कहा, "भाजपा को जनता द्वारा दिया गया जनादेश यह भी दर्शाता है कि उन्होंने लोगों से जुड़े मुद्दों पर बात नहीं की है।" भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने कहा, "ऐतिहासिक, पुरातात्विक और आध्यात्मिक साक्ष्य स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि ज्ञानवापी एक मंदिर है।

 संत्रों ने समतामूलक और समरस समाज को महत्व दिया
मुख्यमंत्री की बात का समर्थन करते हुए अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत राजू दास ने कहा, "यह केवल दुर्भाग्यपूर्ण लोग हैं, जो ज्ञानवापी को मस्जिद कह रहे हैं। यह स्वयं विश्वनाथ हैं, और काशी विश्वनाथ का मंदिर है। यहां तक कि अगर कोई दृष्टिहीन व्यक्ति भी संरचना पर अपना हाथ रखता है, तो उसे 'सनातन' के सभी प्रतीकों की अनुभूति होगी। हम लगातार कहते रहे हैं कि यह एक मंदिर है, केवल मूर्ख लोग ही इसे मस्जिद कहते हैं।" इस दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिंदुस्तानी अकादमी, प्रयागराज के सहयोग से किया गया है।योगी ने कहा कि भारतीय ऋषियों-संतों की परंपरा सदैव जोड़ने वाली रही है, इस संत-ऋषि परंपरा ने प्राचीन काल से ही समतामूलक और समरस समाज को महत्व दिया है। हमारे संत-ऋषि इस बात पर जोर देते हैं कि भौतिक अस्पृश्यता साधना के साथ राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए बाधक है। मुख्यमंत्री ने कहा, "अस्पृश्यता को दूर करने पर ध्यान दिया गया होता तो देश कभी गुलाम नहीं होता। संत परंपरा ने समाज में छुआछूत और अस्पृश्यता को कभी महत्व नहीं दिया। यही नाथपंथ की भी परंपरा है। नाथपंथ ने प्रत्येक जाति, मत, मजहब, क्षेत्र को सम्मान दिया। सबको जोड़ने का प्रयास किया।" मुख्यमंत्री ने कहा कि नाथपंथ ने काया की शुद्धि के माध्यम से एक तरफ आध्यात्मिक उन्नयन पर जोर दिया तो दूसरी तरफ समाज के प्रत्येक तबके को जोड़ने के प्रयास किए। 

नाथपंथ की परंपरा के अमिट चिह्न सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी है
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि नाथपंथ की परंपरा के अमिट चिह्न सिर्फ देश के हर कोने में ही नहीं हैं बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्होंने अयोध्या में गत दिनों तमिलनाडु के एक प्रमुख संत से हुई मुलाकात का उल्लेख करते हुए बताया कि उक्त संत से उन्हें तमिलनाडु के सुदूर क्षेत्रों की नाथपंथ की पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं। यहां गोरखनाथ जी से जुड़े अनेक साधना स्थल और नाथपंथ की परंपराएं आज भी विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि कर्नाटक की परंपरा में जिस मंजूनाथ का उल्लेख आता है, वह मंजूनाथ गोरखनाथ जी ही हैं। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर दास की परंपरा भी मत्स्येंद्रनाथ जी, गोरखनाथ जी और निवृत्तिनाथ जी की कड़ी है। योगी ने कहा कि महाराष्ट्र में रामचरितमानस की तर्ज पर नवनाथों की पाठ की परंपरा है। पंजाब, सिंध, त्रिपुरा, असम, बंगाल आदि राज्यो के साथ ही समूचे वृहत्तर भारत और नेपाल, बांग्लादेश, तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान समेत अनेक देशों में नाथपंथ का विस्तार देखने को मिलेगा। मुख्यमंत्री ने नाथपंथ की परंपरा से जुड़े चिह्नों के संरक्षण और उसे एक संग्रहालय के रूप में संग्रहित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के महायोगी गुरु गोरखनाथ शोधपीठ इस दिशा में पहल कर सकता है। 


उन्होंने शोधपीठ से अपील की कि वह नाथपंथ की इनसाइक्लोपीडिया में नाथपंथ से जुड़े सभी पहलुओं, नाथ योगियों के चिह्नों को इकट्ठा करने का प्रयास करें। मुख्यमंत्री ने कहा देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप नाथपंथ ने अपनी भूमिका को सदैव समझा। जब देश बाहरी आक्रमण शुरू हो गए थे तब नाथपंथ के योगियों ने सारंगी वादन के जरिये समाज को देश पर आए खतरे के प्रति जागरूक किया। इसी तरह सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करने में भी नाथपंथ अग्रणी रहा है। 

उन्होंने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि महायोगी गोरखनाथ जी ने गोरखपुर को अपनी साधना से पवित्र किया। योगी ने सभी लोगों को राजभाषा हिंदी दिवस की बधाई देते हुए कहा कि हिंदी देश को जोड़ने की एक व्यावहारिक भाषा है। इसका मूल देववाणी संस्कृत है। मुख्यमंत्री ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के ‘निज भाषा उन्नति' वाले उद्धरण का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र का भाषा के प्रति यह भाव आज भी आकर्षित करता है। उन्होंने कहा कि यदि भाव और भाषा खुद की नहीं होगी तो हर स्तर पर प्रगति बाधित करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने देश को जोड़ने के लिए हिंदी को जिस रूप में देश-दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है, वह अभिनंदनीय है।   

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!