विधान परिषद की 11 सीटों पर चुनाव में देरी के लिए शासन और आयोग जिम्मेदार: तिवारी

Edited By Umakant yadav,Updated: 26 Oct, 2020 03:54 PM

governance responsible for delay in election on 11 seats of legislative council

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष एवं आगरा खण्ड स्नातक से एमएलसी पद के प्रत्याशी हरि किशोर तिवारी ने उत्तर प्रदेश की 11 रिक्त विधान परिषद की सीटों पर होने वाले चुनाव में देरी के लिए शासन और निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार ठहराया है।

लखनऊ: राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष एवं आगरा खण्ड स्नातक से एमएलसी पद के प्रत्याशी हरि किशोर तिवारी ने उत्तर प्रदेश की 11 रिक्त विधान परिषद की सीटों पर होने वाले चुनाव में देरी के लिए शासन और निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार ठहराया है।

तिवारी ने सोमवार को यहां कहा कि उत्तर प्रदेश के विधानपरिषद चुनाव में निर्वाचन आयोग की भूमिका गुड खाकर गुलगुलों से परहेज करनी जैसी है। एक तरफ निर्वाचन आयोग 25 सितम्बर को बिहार की 243 विधानसभा और 29 सितम्बर को देश की 56 विधानसभा और एक लोकसभा सीट के उपचुनाव की इस भीषण कोरोना संक्रमण के दौरान चुनाव की तिथि घोषित करने में देर नहीं करता। वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के उच्चधिकारियों द्वारा कोरोना का भय दिखा व्यवस्था न करने के पत्र मिलते ही पांच मई 2020 को अपना कार्यकाल खत्म कर चुकी 11 विधानपरिषद की सीटों के चुनाव की तिथि लगातार आगे बढ़ा रहा है।

उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग 30 जून 2020 यानि यूपी के विधानपरिषद सदस्यों के कार्यकाल के एक माह बाद समाप्त होने वाले कर्नाटक की चार विधान परिषद सीटों और बिहार की चार स्नातक और चार शिक्षक विधायक सीटों के लिए चुनाव की तिथि घोषित कर चुका है। इस सम्बंध में औचित्य का प्रश्न उठाते हुए एवं निर्वाचन आयोग की संदिग्ध भूमिका के मद्देनजर आगरा स्नातक खण्ड एमएलसी चुनाव के प्रत्याशी इं. हरिकिशोर तिवारी, शिक्षक महेन्द्र नाथ और आकाश अग्रवाल ने याचिका दाखिल कर दी है। इसके लिए दो नवम्बर 2020 को सुनवाई होनी है। इस केस में वादियों की तरफ से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शशिनंदन पैरवी कर रहे है। 

तिवारी ने कहा कि एक तरफ जहॉ कोरोना संक्रमण को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से प्रदेश की 11विधान परिषद सीटों के चुनाव में व्यवस्था न करने की बॉत की जा रही है, वही प्रदेश की सात विधानसभा के चुनाव के लिए सहमति प्रदान करना दोहरी मानसिकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि परिषद और विधानसभा चुनाव में भारी अन्तर है। एक तरफ एक एक मतदान केन्दों पर भारी वोटर तो दूसरी तरफ परिषद चुनाव में नाम मात्र के वोटर एक केन्द्र में होगे यानि परिषद चुनाव में सोशल डिस्टेसिंग एवं मास्क जैसे बचाव के सारे प्रयास हो सकते है। परिषद चुनाव में स्नातक और शिक्षक वर्ग को मतदान करना है जिन्हें कोरोना संक्रमण का पूरा ज्ञान है जबकि विधानसभा में वोटरों से संक्रमण या फिर बचाव के उपाय अपनाने की कोई गारन्टी नहीं है।

उन्होंने कहा कि एक तरफ जहॉ विधानसभा चुनाव में रैली और आम सभा के दौरान लाख की भीड़ वो भी न सोशल डिस्टेसिंग और नही ही मास्क प्रयोग जबकि विधानसभा परिषद चुनाव में ऐसा कुछ नही। श्री तिवारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में विधानपरिषद के चुनाव अप्रैल 2020 में होने थे। क्योकि इनका कार्यकाल पांच मई 2020 को खत्म हो रहा था। इसके लिए अंतिम सूचनी भी जनवरी 2020 में प्रकाशित कर दी गई थी। नामांकन तिथि घोषित होने से पूर्व ही 22 मार्च कोरोना संक्रमण के कारण देश में लॉकडाउन लगते ही जून में होने वाले विधानपरिषद कनाटर्क सहित कई चुनाव टाल दिये गए। अब जबकि कोरोना संकट का कहर बरकरार है इसके बावजूद सरकार द्वारा रेल, बस, बाजार, सिनेमाघर, स्कूल खोल दिये गए हैं।

Related Story

Trending Topics

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!