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Nithari Case: HC के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट जाएगी संस्था, निठारी हत्याकांड के पीड़ितों का मुकदमा लड़ेगी डीडीआरडब्ल्यूए

Edited By Anil Kapoor,Updated: 24 Oct, 2023 08:45 AM

ddrwa will fight the case of victims of nithari murder case

Nithari Case: चर्चित निठारी हत्याकांड के पीड़ितों की ओर से डीडीआरडब्लूए फेडरेशन ने उच्चतम न्यायालय में मुकदमा लड़ने का फैसला किया है। यह जानकारी सोमवार को डीडीआरडब्ल्यूए के अध्यक्ष एम.पी.सिंह ने दी। निठारी हत्याकांड से जुड़े मामलों में इलाहाबाद उच्च...

Nithari Case: चर्चित निठारी हत्याकांड के पीड़ितों की ओर से डीडीआरडब्लूए फेडरेशन ने उच्चतम न्यायालय में मुकदमा लड़ने का फैसला किया है। यह जानकारी सोमवार को डीडीआरडब्ल्यूए के अध्यक्ष एम.पी.सिंह ने दी। निठारी हत्याकांड से जुड़े मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बरी किये जाने के बाद बीते शुक्रवार को मोनिंदर सिंह पंढेर को ग्रेटर नोएडा की लुक्सर जेल से रिहा कर दिया गया था। डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट रेजिडेंशियल वेलफेयर फेडरेशन (डीडीआरडब्ल्यूए) की टीम सोमवार को निठारी गांव जाकर पीड़ित परिवार के लोगों से मुलाकात की और उनसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराए। टीम ने मामले को उच्चतम न्यायालय तक ले जाने का आश्वासन भी दिया। 

टीम ने पीड़ित झब्बू, उनकी पत्नी सुनीता, रामकृष्ण और जमुना प्रसाद से की मुलाकात 
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, टीम ने पीड़ित झब्बू, उनकी पत्नी सुनीता, रामकृष्ण और जमुना प्रसाद से मुलाकात की। टीम ने यह भी कहा कि निठारी हत्याकांड के आरोपी रहे पंढेर और उसके नौकर को शहर में घुसने नहीं दिया जाएगा। दिसंबर 2006 में पंढेर को उसकी कोठी के पीछे नाले से कंकाल मिलने के बाद गिरफ्तार किया गया था। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने मामले में 19 प्राथमिकी दर्ज की थी। निचली अदालत ने पंढेर को दो मामलों में फांसी की सजा सुनाई थी लेकिन 16 अक्टूबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसे दोनों मामलों में बरी कर दिया। डीडीआरडब्लूए के अध्यक्ष एम.पी. सिंह ने बताया कि यह केस वह तथा उनकी टीम उच्चतम न्यायालय में लड़ेगी। 

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लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर इलाहाबाद HC की टिप्पणी, कहा- 'ऐसे रिश्ते 'टाइमपास' होते'
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाले एक अंतर-धार्मिक लिव-इन जोड़े द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि लिव-इन रिश्ते किसी भी "स्थिरता या ईमानदारी के बिना" एक "मोह" बन गए हैं। यह कहते हुए कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया है, हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की कम उम्र और साथ रहने में बिताए गए समय पर सवाल उठाया कि क्या यह सावधानीपूर्वक सोचा गया निर्णय था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि 20-22 साल की उम्र में दो महीने की अवधि में हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि युगल इस प्रकार के अस्थायी संबंधों पर गंभीरता से विचार करने में सक्षम होंगे। अदालत ने आगे टिप्पणी की कि लिव-इन रिश्ते "अस्थायी और नाजुक" होते हैं और "टाइमपास" में बदल जाते हैं। पीठ ने कहा कि जिंदगी गुलाबों की सेज नहीं है। यह हर जोड़े को कठिन और कठिन वास्तविकताओं के धरातल पर परखती है। हमारा अनुभव बताता है कि इस प्रकार के रिश्ते अक्सर टाइमपास, अस्थायी और नाजुक होते हैं और इस तरह हम किसी भी तरह की सुरक्षा देने से बचते हैं।

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