Edited By Purnima Singh,Updated: 13 May, 2025 05:29 PM

उत्तर प्रदेश के वाराणसी से एक बेहद हैरान करने वाला मामला सामने आया है। काशी में लंदन से आई एक 49 साल की बांग्लादेशी मुस्लिम महिला अंबिया बानो ने सोमवार को सनातन धर्म अपना कर अपना नाम अंबिया माला रख लिया.......
वाराणसी : उत्तर प्रदेश के वाराणसी से एक बेहद हैरान करने वाला मामला सामने आया है। काशी में लंदन से आई एक 49 साल की बांग्लादेशी मुस्लिम महिला अंबिया बानो ने सोमवार को सनातन धर्म अपना कर अपना नाम अंबिया माला रख लिया। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी का दशाश्वमेध घाट पर पिंडदान किया। पिंडदान का कर्मकांड पांच वैदिक ब्राह्मणों ने कराया।
बेटी सपने में आकर मुक्ति की बात करती थी
लंदन में पली- बढ़ीं अंबिया माला बांग्लादेश में श्रीरामपुर की रहने वाली हैं। लंदन में उनका विवाह नेविल बॉरन जूनियर से हुआ था। जोकि ईसाई धर्म को मानते थे। अंबिया से शादी करने के लिए नेवल बार्न ने मुस्लिम धर्म स्वीकार किया था। शादी के करीब एक दशक बाद नेवल से उनका तलाक भी शरियत के कानून के अनुरूप हुआ। अंबिया का कहना है कि 27 साल पहले गर्भ में उनकी बेटी की मौत हो गई थी। पिछले कुछ सालों से उनकी बेटी सपने में आकर अपने मुक्ति की बात करती थी। मुक्ति या मोक्ष कैसे मिलेगा, इसके बारे में उन्होंने जानकारी ली। कई वेबसाइट्स खंगालने पर उन्हें काशी में पिंडदान और मोक्ष के बारे में पता चला। जिसके बाद उन्होंने सामाजिक संस्था आगमन से बात की और सीधे काशी आ गईं।
अंबिया माला ने कहा कि 27 साल पहले अनजाने में अबॉर्शन करवा लिया था। उसी का प्रायश्चित करने आई हूं। बाहर के देशों के एजुकेशन सिस्टम अबॉर्शन को कोई गलती नहीं मानते, लेकिन मैं जानती हूं कि हर कल्चर में सनातनी प्रवृत्ति है।
गंगा स्नान कराकर स्वीकार कराया सनातन धर्म, 5 पंडितों ने कराया श्राद्ध कर्म
अंबिया माला ने बताया कि जो गलती उनके पूर्वजों ने की है, उन्हें सुधारते हुए उन्होंने सनातन धर्म अपना लिया है। काशी पहुंचने पर आगमन संस्था के संस्थापक सचिव डॉ. संतोष ओझा ने अंबिया को गंगा स्नान कराया और सनातन धर्म स्वीकार कराया। फिर पंचगव्य ग्रहण कराकर उनकी आत्मशुद्धि कराई। इसके बाद अंबिया माला सोमवार को काशी के दशाश्वमेध घाट पहुंचीं। जहां उन्होंने अपनी बेटी के मोक्ष कामना से वैशाख पूर्णिमा पर दोपहर में शांति पाठ कराया। श्राद्ध कर्म की शुरुआत आचार्य पं दिनेश शंकर दुबे ने कराया। सहयोग में पं सीताराम पाठक, कृष्णकांत पुरोहित, रामकृष्ण पाण्डेय और भंडारी पाण्डेय ने श्राद्ध कर्म कराया।