चिता की आग से पेट की आग मिटाता है ये परिवार, जानिए इसके पीछे का रहस्य

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 07 Jan, 2019 05:41 PM

this family makes food on the fire of chita

हिंदू धर्म में मोक्ष पाने का एकमात्र केंद्र काशी है। इस मुक्ति धाम पर जो लोग जीते जी नहीं आ पाते उन्हें उनका अंत समय यहां खींच लाता है। वैसे को धर्म नगरी काशी की अनेको कहानियां प्रचलित है। इन्ही में से एक कहानी से आज आपको अवगत करने जा रहे हैं। ये...

वाराणसीः हिंदू धर्म में मोक्ष पाने का एकमात्र केंद्र काशी है। इस मुक्ति धाम पर जो लोग जीते जी नहीं आ पाते उन्हें उनका अंत समय यहां खींच लाता है। वैसे को धर्म नगरी काशी की अनेको कहानियां प्रचलित है। इन्ही में से एक कहानी से आज आपको अवगत करने जा रहे हैं। ये कहानी है काशी के मणिकर्णिका घाट पर सदियों से राज करने वाले डोमराजा के परिवार की। जिन्हें राजा की उपाधि तो मिली, लेकिन राजपाठ नहीं मिला।
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चिता की लकड़ियों पर पकता है इस परिवार का खाना
दरअसल, काशी के ‘डोमराजा’ परिवार में हजारों साल से चिता की लकड़ियों पर ही खाना पकाने और खाने की परंपरा रही है। चिता की लकड़ियों से आग ही इनकी रसोई है। यहां 400 परिवार के 4000 से अधिक सदस्य इसी रसोई से पकाया का खाना खातें हैं। इसके पीछे क्या रहस्य है, इसके बारे में हम विस्तार से बताते हैं।
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अनादिकाल से आज तक नहीं बुझी चिता की आग
जानने योग्य है कि काशी में मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग मणिकर्णिका महाश्मशान पर आते हैं। कहते हैं यह विश्‍व का अकेला श्‍मशान घाट है, जहां चिता की आग अनादिकाल से आज तक नहीं बुझी है। इसी चिता की लकड़ियों से काशी के महाश्मशान के मालिक डोमराजा घराने के सदस्य सदियों से खाना पकाते आ रहे हैं।
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भगवान् शिव के क्रोध ने बनाया राजा
मणिकर्णिका मह्श्मशान के बारे में और जानकारी के लिए हमने आस-पास के लोगों से इस बारे में और जानकारी ली। यहां के लोगों ने बताया कि अनादिकाल में जब काशी का नाम आनन्दवन हुआ करता था। उस समय भगवान् शिव माता पार्वती के साथ यहां भ्रमण के लिए आये थे और मणिकर्णिका घाट पर स्थित कुंड को उन्होंने अपनी जटाओं से भरा था। जिसके बाद माता पार्वती ने इसमें स्नान किया था। स्नान के समय माता पार्वती का कुंडल इसमें गिर गया था। जिसे हमारे पूर्वज कल्लू महराज ने उठा लिया था। भगवान् शंकर के क्रोधित होने के बावजूद कल्‍लू ने कुंडल के बारे में नहीं बताया तो उन्होंने उसे और उसकी आने वाली सम्पूर्ण नस्लों को चंडाल होने का श्राप दिया। तब से ये लोग शमशान वासी हो गए और इन्ही के हाथों से चिताओं को अग्नि मिलती रही। यह बातें काशी के इतिहास और पुराणों में भी इंगित है।
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क्या कहते हैं डोम राजा के वशंज
इस बारे में मौजूदा डोम राजा जगदीश चौधरी ने बताया कि हमारा 5000 लोगों का बड़ा परिवार है। सभी घर में तीनों टाइम चूल्हे की आग के लिए जलती हुई चिताओं से जलती हुई लकड़ियां ली जाती हैं। उसी पर हम खाना बनाते हैं और खातें हैं। भगवान् की कृपा से हमारे घर में सभी निरोग हैं। वहीं डॉम राजा के परिवार का मानना है कि ये प्रसाद है इसलिए ये परंपरा के तौर पर युगों से चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा।
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जानिए ‘डोम’ का अर्थ
‘डोम’ का मूल अर्थ है दाह संस्कार करवाने वाला। हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं। गर्भाधान से शुरू हुआ आदमी का जीवन चिता अग्नि के आखिरी संस्कार के साथ खत्म हो जाता है।

 


 

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