कानपुर में लेंटर गिरा लेकिन जिम्मेदारों का ज़मीर नहीं हिला! ‘KDA की नींद तोड़ने के लिए अब क्या पूरा शहर ढहाना होगा?’

Edited By Mamta Yadav,Updated: 17 Jun, 2025 03:23 PM

the lintel fell in kanpur but the conscience of those responsible not shaken

कहते हैं विकास जरूरी है… लेकिन अगर विकास ही विनाश का कारण बन जाए और लोगों की जान जाने की नौबत आ जाए तो सवाल उठना लाज़मी है। कानपुर के बर्रा में बिल्डिंग नहीं गिरी… गिरी है वो बिल्डिंग जो कानपुर विकास प्राधिकरण के जो भ्रष्टाचार, लापरवाही और अंधे...

Kanpur News, (प्रांजुल मिश्रा):  कहते हैं विकास जरूरी है… लेकिन अगर विकास ही विनाश का कारण बन जाए और लोगों की जान जाने की नौबत आ जाए तो सवाल उठना लाज़मी है। कानपुर के बर्रा में बिल्डिंग नहीं गिरी… गिरी है वो बिल्डिंग जो कानपुर विकास प्राधिकरण के जो भ्रष्टाचार, लापरवाही और अंधे सिस्टम की नींव पर खड़ी थी! "यह तस्वीरें किसी भूकंप की नहीं हैं, यह हादसा किसी प्राकृतिक आपदा का नहीं है, यह है KDA की ‘विकासशील लापरवाही’ से उपजी विनाश की जीती-जागती मिसाल।" "चार मंज़िला इमारत का लेंटर गिरा, कई मजदूर मलबे में दबे…और KDA के अफसर शायद अगली बोर्ड मीटिंग में ‘भ्रष्टाचार का नया नक्शा’ पास करने की तैयारी कर रहे होंगे!"
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बता दें कि "यह वही इमारत है, जिसके बारे में पहले ही लोगों ने कहा था, ‘कुछ गड़बड़ है’। यह वही इमारत है, जिसकी दीवार पहले ही गिर चुकी थी पर KDA ने कुछ क्यों नहीं किया..? क्योंकि KDA अब निर्माण नहीं देखता वो तो जेब की गहराई देखता है।" "इस अधूरी इमारत के भीतर एक निजी स्कूल भी चल रहा था अगर हादसा दिन में होता?  क्या KDA ‘माफीनामा’ पढ़कर बच्चों की जान लौटा पाता..? केडीए का क्षेत्रीय जेई रामदास चुप क्यों हैं..? सुपरवाइज़र राजेन्द्र कुमार क्या आंखें बंद कर रखी थीं..? KDA ने क्या रिश्वत लेकर ‘अनुमति’ दी थी? स्थानीय लोगों का कहना है कि KDA ने न कोई जांच की, न कोई नोटिस दिया… और अब बैकडेट में कागज़ी खानापूर्ति की जा रही है। यह कोई इकलौता मामला नहीं!
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" रेस्क्यू हुआ, फायरब्रिगेड आई, पुलिस भी आई…पर सवाल यह है कि ये स्थिति ही आई क्यों?
"पूरे कानपुर में आवासीय नक्शों पर कॉमर्शियल निर्माण, बिना अनुमति मंज़िलें खड़ी हो रही हैं, नक्शा कुछ और निर्माण विपरीत!" अवैध निर्माणों में एक्स्ट्रा फ्लोर का एक्सटेंशन...। "हां, रेस्क्यू हुआ, फायरब्रिगेड आई, पुलिस भी आई…पर सवाल यह है कि ये स्थिति ही आई क्यों? जब निर्माण पहले ही संदेहास्पद था तो KDA के ज़िम्मेदार अफसरों ने रोक क्यों नहीं लगाई? स्थानीय लोगों ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा "हमने पहले भी कहा था ये इमारत गिरेगी…पर कोई सुनने वाला नहीं था। अब हादसा हो गया तो सबको ‘नोटिस काटने की याद’ आ रही है!"
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"KDA के दफ्तर में नक्शे पास होते हैं या सौदे..?

फ्लोर की मंजूरी मिलती है या कीमत तय होती है?

हर मंज़िल जो गिरती है, वो सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं गिराती, वो जनता का भरोसा भी तोड़ती है।

तो क्या अब भी दोषी JE रामदास और सुपरवाइज़र राजेंद्र कुमार पर सिर्फ लीपापोती होगी...? या इस बार KDA को उसकी ‘कंक्रीट लापरवाही’ की असली कीमत चुकानी होगी..!

"यह हादसा सबक है या रिवाज बनता जा रहा है?

क्या अब भी आंखें बंद रहेंगी, या KDA के गलियारों में जवाबदेही की दस्तक होगी..?"

"सवाल बहुत हैं… पर क्या जवाब आएगा? या फिर KDA एक और इमारत के गिरने तक… ‘फ़ाइलों की छत’ के नीचे सोता रहेगा?"

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