Edited By Ramkesh,Updated: 28 Aug, 2024 01:54 PM
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में तथ्यों और साक्ष्य को पेश नहीं करने को लेकर राज्य के पुलिस विभाग, अभियोजन निदेशक कार्यालय और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय के खिलाफ जांच का आदेश दिया है। यह मामला एक महंत से जुड़ा है जिस पर आरोप है कि वह स्नान कर रही...
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में तथ्यों और साक्ष्य को पेश नहीं करने को लेकर राज्य के पुलिस विभाग, अभियोजन निदेशक कार्यालय और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय के खिलाफ जांच का आदेश दिया है। यह मामला एक महंत से जुड़ा है जिस पर आरोप है कि वह स्नान कर रही महिलाओं के वीडियो बनाता था। अदालत ने महंत मुकेश गिरि द्वारा दायर अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
अदालत द्वारा मांगे गए प्रमुख साक्ष्य को पेश करने में अभियोजन पक्ष के विफल रहने पर चिंता व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान ने ज़ोर दिया कि तथ्यों और साक्ष्यों का अदालत के समक्ष खुलासा नहीं करना न्याय देने में हस्तक्षेप के समान है। उच्च न्यायालय के 23 अगस्त के आदेश के मुताबिक, प्रमुख सचिव की रैंक के बराबर या उससे ऊपर का अधिकारी जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा नामित किया जाएगा, महत्वपूर्ण सूचना रोकने में पुलिस और अभियोजन पक्ष की भूमिका की जांच करेगा।
इससे पूर्व पांच जुलाई 2024 को अदालत ने अपीलकर्ता के खिलाफ जांच के दौरान मिले साक्ष्यों को प्रकट करते हुए राज्य सरकार के वकील को जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर 2024 को करने का निर्देश दिया है। एक महिला की शिकायत के बाद इस साल मई में गाजियाबाद पुलिस ने महंत मुकेश गिरि के खिलाफ मामला दर्ज किया था। महिला ने गाजियाबाद के मुरादनगर क्षेत्र में स्थित घाट पर बने वस्त्र बदलने के कक्ष में सीसीटीवी लगे होने की शिकायत की थी।