Edited By Deepika Rajput,Updated: 28 Aug, 2019 03:03 PM
कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर समस्या का सूत्रधार बताते हुए बसपा अध्यक्ष मायावती ने कहा कि धारा-370 को हटाया जाना राष्ट्रहित में है और घाटी में हालात सामान्य होने तक विपक्षी दलों संयम से काम लेने की जरूरत है।
लखनऊः कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर समस्या का सूत्रधार बताते हुए बसपा अध्यक्ष मायावती ने कहा कि धारा-370 को हटाया जाना राष्ट्रहित में है और घाटी में हालात सामान्य होने तक विपक्षी दलों को संयम से काम लेने की जरूरत है।
बसपा के प्रदेश मुख्यालय में आयोजित केंद्रीय कार्यकारिणी और पदाधिकारियों की बैठक में मायावती को एक बार फिर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। इस मौके पर मायावती ने कहा कि बसपा मूवमेंट को आगे बढ़ाने के लिए वे हर प्रकार की कुर्बानी देने को तैयार रहती हैं और पार्टी एवं मूवमेंट के हित में न तो वे कभी रुकने वाली हैं, न ही झुकने वाली हैं, टूटना तो बहुत दूर की बात है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने को लेकर मायावती ने कहा कि डॉ. अंबेडकर हमेशा ही देश की समानता, एकता व अखंडता आदि के पक्षधर रहे हैं और इसी आधार पर वे जम्मू-कश्मीर में अलग से धारा 370 का प्रावधान करने के कतई भी पक्ष में नहीं थे। इसी वजह से ही बसपा ने संसद में इस धारा को हटाए जाने का समर्थन किया है।
उन्होंने कहा कि वास्तव में वैसे इस समस्या की मूल जड़ कांग्रेस एवं पंडित नेहरू ही हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर से अलग करके लद्दाख क्षेत्र को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने का भी हमारी पार्टी स्वागत करती है। इससे लेह-लद्दाख क्षेत्र के बौद्ध समुदाय की वर्षों पुरानी मांग पूरी हुई है और वे इससे बहुत प्रसन्न हैं। अब उनकी अपनी मांग के मुताबिक केंद्र सरकार को उनकी विशिष्ट पहचान, उनकी संस्कृति व उनके क्षेत्र के आपेक्षित विकास आदि पर खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है। देश में संविधान लागू होने के लगभग 70 वर्षों के उपरांत इस धारा 370 की समाप्ति के बाद, वहां पर हालात सामान्य होने में थोड़ा समय तो लगेगा। इसलिए इसका इंतजार किया जाए तो यह बेहतर ही होगा, जिसको न्यायालय ने भी माना है।
उन्होंने कहा कि ऐसे में हाल ही में बिना अनुमति के कांग्रेस व अन्य पार्टियों के नेताओं का कश्मीर जाना क्या केंद्र व वहां के गवर्नर को राजनीति करने का मौका देने जैसा कदम नहीं है। अगर इनके जाने पर कश्मीर में थोड़े भी हालात बिगड़ जाते, तो फिर क्या केंद्र की सरकार इसका दोष इन पार्टियों पर नहीं थोप देती।