‘मुसलमानों की कमजोर कड़ी पर हाथ रख रहीं अदालतें’, मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने को SC के फैसले पर बोले मौलाना शहाबुद्दीन

Edited By Mamta Yadav,Updated: 14 Jul, 2024 03:55 PM

maulana shahabuddin said on sc s decision to give alimony to muslim women

आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रज़वी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं और गैर मुस्लिम महिलाओं दोनों के बारे में फैसला दिया है। इस फैसले को एक...

Bareilly News, (जावेद खान): आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रज़वी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं और गैर मुस्लिम महिलाओं दोनों के बारे में फैसला दिया है। इस फैसले को एक तरफा कहना मुनासिब नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फाजिल जजों ने महिलाओं की खस्ता हालत और दयनीय स्थिति को देखते हुए ये निर्णय दिया है। इस्लाम धर्म भी उन मुस्लिम महिलाओं के साथ जो तलाकशुदा, बेवा या यातीम है उनके साथ रहमदिली और सहानुभूति की बात करता है। पैगम्बरे इस्लाम की शिक्षा यहां तक है कि शौहर अपनी बीबियों के साथ हुस्ने सूलूक के साथ पेश आये और उनका हर तरह से ख्याल रखें।
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मौलाना ने कहा कि तीन तलाक़ वाली महिलाएं इद्दत गुजारेंगी, इस दरमियान जो भी इखरा जात (खर्चा) होंगे वो शौहर अदा करेगा। उसके बाद वो महिला दूसरे से निकाह कर सकती है। अब उसके इखरा जात की जिम्मेदारी पूर्व शौहर पर आयद नहीं होगी, अगर महिला किसी व्यक्ति से निकाह नहीं करना चाहती है और अपनी जिंदगी तन्हाई के साथ गुजारना चाहती है तो शरीयत उस महिला के साथ रहमदिली और हमदर्दी का इज़हार करती है। अगर परिवार का कोई व्यक्ति या कोई मुस्लिम संस्था उस महिला को जिंदगी गुजारने के लिए कुछ खर्चा पानी देती है तो शरीयत ने उसको नाजायज़ करार नहीं दिया है।
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मुसलमानों की कमजोर कड़ी पर हाथ रख रहीं अदालतें
मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी ने कहा कि चंद सालों से अदालतें मुसलमानों की कमजोर कड़ी पर हाथ रख रही है, जगह जगह मस्जिद, महिला, मदरसा आदि धार्मिक चीजों को मुद्दा बनाकर अदालतो में रोज सुनवाई होती है और इसी बहाने से शरीयत का मज़ाक बनाकर तौहीनी की जाती है। इन तमाम मसाइल को लेकर भारत का मुसलमान बहुत परेशान और चिंतित है। कोई भी बड़ा व्यक्ति या संगठन और शरीयत के नाम पर बनी संस्थाएं सामने नहीं आती है बल्कि कौ़म को दिखाने के लिए चार छः उलमा को बैठाकर खाना पूर्ती कर दी जाती है। जबकि होना यह चाहिए था कि शरीयत के नाम पर बनी संस्थाओं को जिला कोर्ट, हाईकोर्ट, और सुप्रीम कोर्ट में लंबित जितनी भी धार्मिक याचिकाए है उन सब पर अच्छे वकील खडे किए जाते, वो मजबूत दलीलों के साथ अदालतो को संतुष्ट करते, फिर फैसला मुसलमानों के हक में होता मगर ये सब कुछ नहीं किया गया, और अब शोर मचाने और हंगामा काटने से कोई मसला हल होने वाला नहीं है।

मुस्लिम महिलाएं कोर्ट कचहरी जाने से बचें…
मौलाना ने आगे कहा कि मुस्लिम महिलाएं कोर्ट कचहरी जाने से बचें ताकि शरीयत का माज़ाक न बनाया जाए, और देश भर में स्थापित दारुइफ्ता और दारुल कज़ा (शरीयत कोर्ट) से वाबस्ता उलमा अपनी जिम्मेदारियों को निभायें। कोई भी महिला अगर उलमा के पास पहुंचती है तो उसकी बातों को गम्भीरता से सुनें और मसले का हल करें। अगर उलमा नहीं सुनेंगे तो यह महिलाएं कोर्ट कचहरी की तरफ रुख करेंगी। फिर इससे ज्यादा खतरनाक परिणाम आ सकते है। इसलिए दारुल इफ्ता और दारुल कज़ा के उलमा की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वो हालात को सम्भाले और शरीयत का मज़ाक बनने से रोके।

 

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