VIDEO: बजरंगी भाईजान की मुन्नी नहीं अयोध्या की गीता की असली कहानी... दर-दर भटकने के बाद अपनों से मिली गीता

Edited By Anil Kapoor,Updated: 26 Sep, 2024 03:17 PM

Ayodhya News: सलमान खान और करीना कपूर की बजरंगी भाईजान फिल्म आपने देखी होगी… लेकिन, हम आपको दिखाते है अयोध्या के गीता की वो कहानी जो भले ही फिल्मी लगती हो...लेकिन, असलियत में इसके किरदार और उनके जज्बात बिलकुल असली है इनके दर्द भी असली है और ....

Ayodhya News:(संजीव आजाद) सलमान खान और करीना कपूर की बजरंगी भाईजान फिल्म आपने देखी होगी… लेकिन, हम आपको दिखाते है अयोध्या के गीता की वो कहानी जो भले ही फिल्मी लगती हो...लेकिन, असलियत में इसके किरदार और उनके जज्बात बिलकुल असली है इनके दर्द भी असली है और बिछड़ने का गम और मिलने की खुशी भी असली है। अयोध्या की ये कहानी तीन बच्चों की मां गीता और उसके परिवार की आप बीती है। दर दर भटकती गीता और एक रिश्ते के जन्म की भी कहानी है जिसे वो अब अपना भाई कहती है और जिसकी कोशिशों से अब वो अपने परिवार से आखिरकार मिल सकी।  ये कहानी उस परिवार की भी है जिसने अब गीता से मिलने की आस ही छोड़ दी थी और अब मिलने के बाद आंखो में खुशी के आंसू है तो जुबा से शब्द ही गायब है।

अयोध्या की गीता की असली किरदारों की फिल्मी कहानी
दरअसल, दो बेटों और एक बेटी की मां गीता की तबियत खराब होती है। जिसका असर उसके दिमाग पर भी पड़ता है। 8 माह पहले एक दिन वो अपने घर से सारे जेवरात एक पोटली में बांध कर निकल पड़ती है। वह दर-दर भटकती रहती है, मांगने से जो खाना मिला वो खा लेती है, चबूतरा हो या कोई और जगह जहां भी मन किया सो जाती है, लेकिन वो अपनी पोटली को हमेशा सीने से लगाए रहती है... 2 महीने भटकते भटकते बीत जाता है। अयोध्या के जनौरा क्षेत्र में गेस्ट हाउस चलाने वाले मनोज पाठक की नजर एक दिन गीता पर पड़ती है तो वो उसे अपने घर लाते हैं, उसकी देखभाल करते हैं और इलाज कराते हैं। गीता को अभी भी अपने परिवार के बारे में  कुछ याद नहीं आता। वो कहती है उसका कोई नहीं है और घर अतिक्रमण की चपेट में आकर गिर गया है। धीरे धीरे विश्वास का धागा मजबूत होता है तो वो अपने जेवरात की पोटली भी मनोज को दे देती है लेकिन, परिवार के बारे में उसे अभी भी कुछ याद नहीं आता।

8 महीने दर-दर भटकने के बाद अपनों से मिली गीता
गीता के वोटर कार्ड और उसकी फोटो खींच कर मनोज लगातार उसकी तलाश करता है और बजरंग बली के दिन यानी मंगलवार को महीनों बाद आखिरकार उसकी ये तलाश पूरी हो जाती है। उम्मीद के कमजोर धागे को पकड़े हुए परिवार को गीता से मिलने के बाद इतनी खुशी मिलती है की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगते है लेकिन ओंठो से शब्द बड़ी मुश्किल से निकलते है। घर जाते समय गीता को उसके जेवरात भी दे दिए जाते है लेकिन घर जाने के पहले गीता जिद कर बैठती है कि उसके भाई उसे घर तक छोड़ने जाए। वहीं भाई जो उसको अचानक मिले जिन्होंने न सिर्फ उसको अपने परिवार से मिलाया बल्कि एक बार फिर उसके जीवन को रोशन कर दिया।

खैर, जहां एक ओर परिवार को गीता से मिलने की खुशी देखी जा रही है वहीं दूसरी ओर मनोज पाठक ने एक मिशाल पेश की है। ये साबित करके दिखा दिया है कि आज भी कहीं ना कहीं इंसानियत जिंदा है।
 

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