सुलतानपुर के रामचेत मोची की बदली या बदहाल जिंदगी? बिहार में राहुल गांधी के दावे और ज़मीनी सच्चाई की हकीकत

Edited By Mamta Yadav,Updated: 04 Nov, 2025 05:22 PM

has the life of ramchet mochi of sultanpur changed or is it in ruins

बिहार चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने भाषण में उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर के दलित मोची रामचेत की मिसाल पेश की थी। राहुल ने दावा किया था कि उन्होंने रामचेत की मदद की, जिससे उनकी जिंदगी बदल गई और अब वह 10 लोगों को रोजगार दे रहे...

सुलतानपुर/पटना: बिहार चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने भाषण में उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर के दलित मोची रामचेत की मिसाल पेश की थी। राहुल ने दावा किया था कि उन्होंने रामचेत की मदद की, जिससे उनकी जिंदगी बदल गई और अब वह 10 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। लेकिन जब ‘आजतक’ की टीम सुल्तानपुर के गुप्तारगंज पहुंची, तो तस्वीर कुछ और ही निकली।
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कौन हैं रामचेत मोची?
सुल्तानपुर जिले के गुप्तारगंज के पास हाईवे किनारे रामचेत की छोटी-सी मोची की दुकान है। जुलाई 2024 में जब राहुल गांधी कोर्ट पेशी के सिलसिले में सुल्तानपुर आए थे, तो लौटते वक्त अचानक उन्होंने रामचेत की दुकान पर रुककर बातचीत की थी। रामचेत ने बताया था कि वह अपना काम बढ़ाना चाहते हैं लेकिन संसाधनों की कमी है। इसके बाद राहुल गांधी ने उन्हें जूते और बैग सिलने वाली एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन भेजी थी। उसी के बाद से रामचेत चर्चा में आए थे।
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बेटे राघव राम ने बताई हकीकत
वर्तमान में रामचेत की दुकान उनके बेटे राघव राम और एक रिश्तेदार द्वारा संभाली जा रही है। राघव के मुताबिक, “राहुल गांधी जी ने मशीन भेजी थी, लेकिन अब वह महीनों से बंद पड़ी है। पिता की तबीयत खराब हो गई, और जो कारीगर काम पर आए थे, वे चले गए। अब मैं अकेले काम करता हूं।” राघव ने यह भी माना कि काम में थोड़ी बढ़ोतरी तो हुई थी, लेकिन हालात में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया।

बीमारी ने थाम दिया काम
रामचेत मोची इस समय बीमार हैं और अपने घर के बगल में बिस्तर पर पड़े हैं। उनकी गर्दन में गांठ की शिकायत के चलते इलाहाबाद में इलाज चला, मगर अब उनकी हालत ऐसी नहीं है कि वह दुकान पर बैठ सकें। दुकान पर जाकर देखने पर ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि वहां 10 लोगों को रोजगार मिल रहा हो।

मदद मिली, पर किस्मत ने साथ नहीं दिया
रामचेत और उनके परिवार का कहना है कि राहुल गांधी ने मदद जरूर की थी। मशीन भेजी, इलाज में सहयोग किया पर जिंदगी की दिशा नहीं बदल सकी। रामचेत कहते हैं कि वह राहुल गांधी के आभारी हैं, मगर किस्मत ने उन्हें वहीं रोक दिया जहां से सफर शुरू हुआ था।

मेहनती मोची की अधूरी उम्मीदें और टूटी हुई मशीन
राहुल गांधी के दावों और रामचेत की मौजूदा स्थिति के बीच बड़ा अंतर साफ दिखता है। एक ओर नेता ‘सफलता की कहानी’ सुना रहे हैं, तो दूसरी ओर जमीनी सच्चाई कुछ और बयान करती है, एक मेहनती मोची की अधूरी उम्मीदें और टूटी हुई मशीन।

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